Author : रवि रौशन कुमार (जल चेतना - IIH रुड़की की तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2014 में प्रकाशित) इसे कुदरत की बिडम्बना ही कहेंगे कि धरती पर सत्तर प्रतिशत पानी होने के बावजूद इंसान दिनोंदिन प्यासा होता जा रहा है। एक तथ्य यह भी है कि धरती पर मौजूद पानी का केवल दो प्रतिशत पानी ही इंसान के प्रयोग के अनुकूल है। पानी अब इंसान को आसानी से मुहैया नहीं हो रहा है। इंसानी लापरवाही और कमजोर प्रबन्धन के चलते न केवल हिन्दुस्तान बल्कि दुनिया के कई मुल्क पीने के पानी की किल्लत से दो-चार हो रहे हैं। पानी की कमी इस कदर भयावह होती जा रही है कि कुछ सालों में ही पानी की एक-एक बूँद के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है कोई शक नहीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा। इंसानी बदसलूकियों के कारण पानी दिनों-दिन ‘पानी’ माँगता जा रहा है। लगातार निचोड़ते जाने के कारण जमीन के भीतर का पानी नीचे ही जाता जा रहा है। कुएँ, बावड़ी, तालाब वगैरह सूखते जाने की बातें पुरानी हो चुकी हैं। छोटी-मोटी नदियों के सूखने की चर्चा भी अब बेमतलब लगती है। गंगा, यमु...
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