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Showing posts from January, 2020

जल संकट : भयावह परिदृश्य

Author : रवि रौशन कुमार (जल चेतना - IIH रुड़की की तकनीकी पत्रिका, जुलाई 2014 में प्रकाशित)          इसे कुदरत की बिडम्बना ही कहेंगे कि धरती पर सत्तर प्रतिशत पानी होने के बावजूद इंसान दिनोंदिन प्यासा होता जा रहा है। एक तथ्य यह भी है कि धरती पर मौजूद पानी का केवल दो प्रतिशत पानी ही इंसान के प्रयोग के अनुकूल है। पानी अब इंसान को आसानी से मुहैया नहीं हो रहा है। इंसानी लापरवाही और कमजोर प्रबन्धन के चलते न केवल हिन्दुस्तान बल्कि दुनिया के कई मुल्क पीने के पानी की किल्लत से दो-चार हो रहे हैं। पानी की कमी इस कदर भयावह होती जा रही है कि कुछ सालों में ही पानी की एक-एक बूँद के लिये संघर्ष करना पड़ सकता है कोई शक नहीं कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा।          इंसानी बदसलूकियों के कारण पानी दिनों-दिन ‘पानी’ माँगता जा रहा है। लगातार निचोड़ते जाने के कारण जमीन के भीतर का पानी नीचे ही जाता जा रहा है। कुएँ, बावड़ी, तालाब वगैरह सूखते जाने की बातें पुरानी हो चुकी हैं। छोटी-मोटी नदियों के सूखने की चर्चा भी अब बेमतलब लगती है। गंगा, यमु...

बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में जन-संचार माध्यमों की भूमिका

व र्तमान समय में जन-संचार माध्यम एक बहुत ही सशक्त माध्यम है जिसका बच्चों के मन- मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. रेडियो, टीवी, अखबार, पत्रिकाएं, कंप्यूटर, आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा कोई भी बात प्रभावपूर्ण तरीके से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है. इन माध्यमों का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ता है. जैसे इन माध्यमों के द्वारा विभिन्न प्रकार के मनोरंजक, सूचना व ज्ञान आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं. एक ओर जहां इन कार्यक्रमों से बच्चों में अपने आस-पास की दुनियां के विषय में समझ बढ़ती है वहीं कभी-कभी ये उन्हें संकीर्णता की ओर भी ले जाते है. साथ ही आवश्यकता से अधिक समय इन माध्यमों को देने से शारीरिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अतः यह अति अवश्यक है कि बाल-विकास  में जन-संचार माध्यमों का न्यायसंगत तथा विवेकपूर्ण प्रयोग किया जाय. इस आलेख में बाल-विकास के संदर्भ में जन-संचार माध्यमों के प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है. जन-संचार माध्यम : एक परिचय         जन-संचार (Mass-Communic...