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Showing posts from August, 2020

एक बड़े सामाजिक एवं राजनीतिक क्रांति की आवश्यकता

  जब हमारा देश गरीब हुआ करता था तब नियुक्तियां स्थायी हुआ करती थी, पेंशन, अनुकंपा और न जाने कितने लाभ यहां के कर्मचारियों को मिलती थी। निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों का अनोखा संगम दिखता था। तकनीकी स्तर पर भले ही हम कमजोर थे लेकिन सामाजिक ताना-बाना बहुत ही मजबूत हुआ करती थी। लेकिन आज जबकि देश विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने को आतुर है हमने अपने देश में निजीकरण को बढ़ावा देना प्रारंभ कर दिया है। सारी सार्वजानिक उद्यमों को बेचने की पूरी तैयारी की जा चुकी है। कर्मचारियों का शोषण चरम पर है। सरकारी कर्मियों की सुरक्षा और कल्याण के मुद्दे पर सुनने को कोई तैयार नहीं है। क्या हम ऐसे ही लोकतन्त्र की कल्पना किए थे? क्या इसी तर्ज पर हम एक लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को मूर्त रूप दे पाएंगे। आजादी के 74वें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं फिर भी हमारे चुनाव के मुद्दे नहीं बदले हैं। वही गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार! आखिर कब तक? हमें इन मूलभूत चुनौतियों से तो कब की मुक्ति मिल जानी चाहिए थी अब तो वक़्त था शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और साइबर सुरक्षा जैसे मुद्दों को चुनावी मुद्दा बनाने की। लेक...

महर्षि अरविंद का शिक्षा दर्शन

      अ रविन्द घोष का जन्म 15 अगस्त 1872ई0 को कलकत्ता में हुआ था। इन्होंने युवावस्था में स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। ये गरम दल के नेता माने जाते थे परन्तु कालान्तर में वे एक योगी बन गए और पाण्डिचेरी (वर्तमान में पुद्दुचेरी) में अपना आश्रम स्थापित किया। इन्होंने वेद, उपनिषद आदि पर टीका लिखी। इन्होंने योग साधना एवं शिक्षा दर्शन पर मौलिक रचनाएँ की।     महर्षि अरविन्द ने भारतीय शिक्षा चिन्तन में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने सर्वप्रथम घोषणा की, कि मानव सांसारिक जीवन में भी दैवी शक्ति प्राप्त कर सकता है। वे मानते थे कि मानव भौतिक जीवन व्यतीत करते हुए तथा अन्य मानवों की सेवा करते हुए अपने मानस को अतिमानस एवं स्वयं को अतिमानव में परिवर्तित कर सकता है।     अरविन्द के मुताबिक शिक्षण एक विज्ञान है, जिसके द्वारा विद्यार्थियों के व्यवहार में परिवर्त्तन आना अनिवार्य है। उनके शब्दों में- ‘‘वास्तविक शिक्षण का प्रथम सिद्धान्त है कि कुछ भी पढ़ाना संभव नहीं अर्थात् बाहर से शिक्षार्थी के मस्तिष्क पर कोई भी चीज न थोपी जाए। शिक्षण प्रक्रिया द्वारा शिक्षार्थी के ...