समाज के गिरते मूल्यों के लिए हम एक-दुसरे को कोसते है. लेकिन कभी इस बात की ओर हमने ध्यान दिया है कि भ्रष्टाचार, झूठ-फरेव, छीना-झपटी, बालात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देने जैसी प्रवृति किसी व्यक्ति में कैसे पनपते हैं? निश्चित रूप से ऐसे गुणों को व्यक्ति अपने बचपन के दिनों में ही अपने परिवेश से सीखता और अनुकरण करता है. अतः बच्चों को प्रारंभिक कक्षाओं में नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाना बेहद जरुरी है. ऐसा माना जाता रहा है कि अच्छे शिक्षक बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी देते हैं, किन्तु आज विद्यालयों में पाठ्यक्रम को पूरा करना ही मुख्य उद्देश्य बन कर रह गया है. भ्रष्टाचार, चोरी, झूठ जैसे बुराइयों के प्रति बच्चों की आसक्ति न हो इसके लिए बेहद जरुरी है कि परिवार के स्तर पर उनके अन्दर अच्छे गुण सिखाये जाए. लेकिन आज के व्यस्ततम जीवन में अभिभावकों के पास समय का अभाव है. ऐसे में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर विद्यालय पाठ्यक्रम में ही नैतिक शिक्षा को शामिल कर दिया जाना चाहिए ताकि उनके अन्दर अच्छे विचारों का संचार हो, और वे अपने जीवन के प्रत्येक कदम को सामाजिक हित को ध्यान में रख कर ही उठाएंगे.
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नैतिक शिक्षा |
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