सुविधाओं के मामले में सरकारी विद्यालय निजी विद्यालयों से कम नही हैं. सरकारी शिक्षकों का वेतन निजी विद्यालयों के शिक्षकों से अधिक है. सर्व शिक्षा अभियान से पर्याप्त धन उपलब्ध कराया जाता है. अद्यसंरचना भी अब तंदरुस्त हो चुकी है. छात्र-छात्रों के लिए मुफ्त किताबें, पोशाक, छात्रवृति, पेयजल, स्वच्छता जैसे आधारभूत सुविधा उपलब्ध है. इसके बाबजूद सरकारी विद्यालय में पढाई का स्तर बहुत नीचे है. आज जरुरत है सरकारी विद्यालयों के लिए नये सिरे से जवाबदेही तय करने की. निजी विद्यालयों के तर्ज़ पर अनुशासन को अनिवार्य बनाना होगा. अनुशासन का पाठ छात्र और शिक्षक दोनों को पढ़ाने की जरुरत है. शिक्षा राजनीति की शिकार होती जा रही है. ऐसे में आवश्यक है कि शिक्षक राजनीति से दूर रहें और पठन-पाठन पर ध्यान लगायें. छात्र-शिक्षक सम्बन्ध भी सवालों के घेरे में है. दिनानुदिन इस सम्बन्ध में गिरावट आ रही है. अतः समाज में शिक्षण संस्थान और शिक्षकों के प्रति आस्था और सम्मान का भाव जगाना नितांत जरुरी है.
व र्तमान समय में जन-संचार माध्यम एक बहुत ही सशक्त माध्यम है जिसका बच्चों के मन- मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. रेडियो, टीवी, अखबार, पत्रिकाएं, कंप्यूटर, आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा कोई भी बात प्रभावपूर्ण तरीके से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है. इन माध्यमों का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ता है. जैसे इन माध्यमों के द्वारा विभिन्न प्रकार के मनोरंजक, सूचना व ज्ञान आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं. एक ओर जहां इन कार्यक्रमों से बच्चों में अपने आस-पास की दुनियां के विषय में समझ बढ़ती है वहीं कभी-कभी ये उन्हें संकीर्णता की ओर भी ले जाते है. साथ ही आवश्यकता से अधिक समय इन माध्यमों को देने से शारीरिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अतः यह अति अवश्यक है कि बाल-विकास में जन-संचार माध्यमों का न्यायसंगत तथा विवेकपूर्ण प्रयोग किया जाय. इस आलेख में बाल-विकास के संदर्भ में जन-संचार माध्यमों के प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है. जन-संचार माध्यम : एक परिचय जन-संचार (Mass-Communic...
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