एक तरफ़ हम सभी महिलाओं को जागरूक करने की बात करते हैं, उन्हें अपने हक़ के लिए लड़ने को कहते हैं, अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाने की नसीहत देते हैं; और दूसरी तरफ जब महिलाएं अपने ऊपर हुए अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती है तो हम उनके आवाज को दबाने के लिये हर सम्भव प्रयास में जुट जाते हैं। हाल के #MeToo कैंपेन का ही उदाहरण लीजिये; कितने ही रसूखदार लोगों के खिलाफ सम्भ्रांत महिलाओं ने आरोप लगाया है। चाहे वो क्रिकेटर हो, पत्रकार हो, अभिनेता हो, राजनेता हो या अन्य किसी भी क्षेत्र से सम्बंध रखने वाले लोग हों। सभी ने इन आरोपों को एक सिरे से नकार दिया है, इतना ही नहीं आवाज उठाने वाली महिलाओं के खिलाफ मान हानि का मुकदमा तक ठोक दिया है। सरकार में बैठे लोगों पर भी ऐसे आरोप लगे हैं। जरा सोचिए ऐसे में कोई महिला/युवती अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने का हौसला कहाँ से जुटा पाएंगी। ज्ञातव्य हो कि विदेशों में अगर ऐसे आरोप किसी मंत्री अथवा नेता पर लगता है तो तुरंत उनसे इस्तीफा ले लिया जाता है। लेकिन हमारे प्रधान सेवक की चुप्पी यह साबित करती है कि भारत में कानून का चाबुक सिर्फ आम जनता पर ही पड़ता है।
व र्तमान समय में जन-संचार माध्यम एक बहुत ही सशक्त माध्यम है जिसका बच्चों के मन- मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. रेडियो, टीवी, अखबार, पत्रिकाएं, कंप्यूटर, आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा कोई भी बात प्रभावपूर्ण तरीके से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है. इन माध्यमों का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ता है. जैसे इन माध्यमों के द्वारा विभिन्न प्रकार के मनोरंजक, सूचना व ज्ञान आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं. एक ओर जहां इन कार्यक्रमों से बच्चों में अपने आस-पास की दुनियां के विषय में समझ बढ़ती है वहीं कभी-कभी ये उन्हें संकीर्णता की ओर भी ले जाते है. साथ ही आवश्यकता से अधिक समय इन माध्यमों को देने से शारीरिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अतः यह अति अवश्यक है कि बाल-विकास में जन-संचार माध्यमों का न्यायसंगत तथा विवेकपूर्ण प्रयोग किया जाय. इस आलेख में बाल-विकास के संदर्भ में जन-संचार माध्यमों के प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है. जन-संचार माध्यम : एक परिचय जन-संचार (Mass-Communic...
Comments
Post a Comment