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लॉकडाउन का पर्यावरण पर प्रभाव

       संपूर्ण विश्व COVID-19 यानि नोवेल कोरोना वायरस की महामारी से जूझ रहा है। दुनियां भर की तमाम गतिविधियां थम सी गयी है। वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लोगों को घरों में रहने की सलाह दी जा रही है। सरकारें लॉकडाउन को सख्ती से लागू करवा रही है। आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ना तय माना जा रहा हैं। परंतु इस सब के बीच एक सकारात्मक तथ्य सामने आ रहा है जो आजकल पर्यावरण प्रेमियों और वैज्ञानिकों के लिए सुकून देने वाला है। वैसे तो कोरोना महामारी के इस संकट की घड़ी में लॉकडाउन एक आवश्यक कदम है लेकिन इसके कारण पर्यावरण को भी फायदा पहुंच रहा है। जहां वैश्विक स्तर पर प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन एक विकराल समस्या के रूप में सामने है, वहीं विभिन्न देशों में किए गए लॉकडाउन से प्रदूषण ख़त्म हुआ है। लॉकडाउन से फैक्ट्रियां बंद हुई, गाड़ियों की रफ्तार थम गयीं, रेल यातायात स्थगित है, हवाई सेवाएं ठप कर दी गयीं है। इससे समाज बुरी तरह प्रभावित हुआ है; इसमें कोई दो राय नहीं परन्तु इसका सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहा है। नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड एवं कार्बन मोनॉऑक्साइड जैसे जहरीले गैसों का उत्सर्जन नहीं होने से वायु प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट दर्जे की जा रही है। फलतः वायु की गुणवत्ता सुधरी है। भारत के महानगरों में PM 2.5 के स्तर में गिरावट देखी गयी है जो सुखद है। 
                ऑनलाइन पोर्टल पत्रिका डॉट कॉम की खबर के मुताबिक राजस्थान के अलवर में आबो-हवा सुधरी है। यहां की हवा में PM 2.5 का स्तर 20 मार्च को 103 था, जो 25 मार्च तक 50.46 रह गया। वही PM 10 का स्तर 197 से गिरकर 98.04 तक पहुंच गया। पंजाब के भटिंडा में एयर क्वॉलिटी 98 पर पहुंच गया है जो कुछ महीने पहले तक 500 के पार थ। आने वाले दिनों में बंद फैक्ट्रियों और धूल उड़ाते वाहनों पर रोक से देश भर के वायु गुणवत्ता में अप्रत्याशित सुधार देखने को मिल सकता है।
          कोरोना वायरस की वजह से हुए लॉकडाउन से ओजोन लेयर में भी सुधार होता दिख रहा है। भारत सहित दुनियां के कई राष्ट्रों में लॉकडाउन से अंटार्कटिका के ऊपर हो रहे ओजोन क्षय में उल्लेखनीय सुधार आ रहा है। CFC के उत्सर्जन में कमी के कारण उक्त सुखद समाचार प्राप्त हुए हैं। 
              हाल ही में समाचार पत्रों में छपी खबर की माने तो इटली के प्रमुख शहर वेनिस में महज 15-16 दिनों के लॉकडाउन से शहर की स्थिति बदल गयी। दरअसल वहां की नहरों में चलने वाली क्रूज़, स्टीमर और दूसरे जलयानों व पर्यटकों के भारी दबाव से नहरें अवसाद (सिल्ट) से भर गयी थी। कई ऐतिहासिक इमारतों की नींव में पानी भरने लगा था, लेकिन इस लॉकडाउन से नहरों का पानी स्वच्छ हुआ है और हाल के दिनों में कई दशकों पर इन नहरों में मछलियां दिखाई दी है।
  
               मेलबर्न विश्वविद्यालय के रसायनशास्त्री लैन रे का मानना है कि फैक्ट्रियों/ गाड़ियों के बंद होने से ऑस्ट्रेलिया के पास प्रवाल भित्ति के क्षेत्र में सुधार हो सकता है। इस क्षेत्र में कम बारिश के कारण यहां की जैव विविधता प्रभावित हो रही थी; किन्तु हाल के बदलाव से इन क्षेत्रों में फिर से अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। 
Image credit: Flickr/Kyle Taylor
             दुनियां भर के उद्योगों के बंद होने से वायुमंडल को नुकसान पहुंचने वाली गैसों का उत्सर्जन बंद होने से हवा साफ होने लगी है। निर्माण कार्य के बंद होने से वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी देखी गयी है। वहीं फैक्ट्रियों और वाहनों के शोर ने ध्वनि प्रदूषण में प्रभावी कमी कर दी है। अब कंक्रीट के जंगल में भी चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है।
              कुछ पर्यावरणविदों का मानना है कि इस तरह के लॉकडाउन एक निश्चित अन्तराल पर किए जाने चाहिए ताकि पृथ्वी को सांस लेने का अवसर मिल सकें। पर्यावरण को फिर से जीने योग्य बनाने के लिए इस तरह की तालाबंदी लाभप्रद साबित होगी। क्योंकि जिस गति से वृक्षों की कटाई हो रही है उससे वायुमंडल में ऑक्सिजन का स्तर कम होता जा रहा है। इतना ही नहीं ध्वनि प्रदूषण से लोगों में कई तरह की बीमारियों का संचार हुआ है। लगातार लंबे समय तक मानवीय गतिविधियों से पर्यावरण पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए उपर्युक्त सुझाव पर विश्व समुदाय को गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन पर होने वाले सालाना बैठकें बेनतीजा सम्पन्न हो जाती हैं ऐसे में लॉकडाउन जैसे विकल्प कारगर साबित हो सकते हैं। 
             फिलहाल तो संपूर्ण विश्व कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी से निपटने की जद्दोजहद में लगा है। लेकिन कुछ महीनों के बाद जब सब कुछ सामान्य हो जाएगा, तब लॉकडाउन से पर्यावरण पर पड़े सकारात्मक प्रभावों के आंकड़ों का सही विश्लेषण होगा जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे सब के सामने होंगे। लेकिन जो आंकड़े विभिन्न स्रोतों से प्राप्त हो रहे हैं वो निश्चित रूप से उत्साहवर्धक हैं। इन तमाम सकारात्मक प्रभावों का श्रेय कोरोना से लड़ी गयी लड़ाई को जाता है।
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© रवि रौशन कुमार 
शिक्षक, 
राजकीय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय माधोपट्टी 
प्रखंड-केवटी, जिला - दरभंगा (बिहार) 
सम्पर्क :- 07992489624 
ईमेल :-info.raviraushan@gmail.com

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