सरकार द्वारा उठाए गए कदम
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत वर्ष 1994 में कुशेश्वरस्थान नम भूमि क्षेत्र को पक्षी विहार का दर्जा देते हुए इस पक्षी अभ्यारण के लिए 29.21 वर्ग किलोमीटर तक भूमि लेने की घोषणा की गई थी। कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण्य के अन्तर्गत मुख्य रुप से 36 राजस्व ग्राम के 7219.75 एकड़ भूमि शामिल है। सरकार ने विदेशी पक्षियों के शिकार पर प्रतिबंध लगाया है; लेकिन सुरक्षा के लिए अब तक कोई ठोस कदम नही उठाया गया है। 2010 में सरकार द्वारा एक वाच टावर भी बनवाया गया परन्तु स्थिति जस की तस बनी हुई है। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 19मई 2016 को राजपत्र के माध्यम से कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य को पारिस्थितिक संवेदी क्षेत्र (Eco Sensitive Zone) घोषित किया गया। इस अधिसूचना मंे कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य के विकास एवं भूमि उपयोग के बारे में भी विस्तृत दिशा निर्देश दिए गए हैं। इन तमाम प्रयासों के बावजूद वास्तविक स्थिति यह है कि कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य के विकास की सारी परियोजनाएं सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गई है। 27 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस इलाके में एक सरकारी साईन बोर्ड के अलावा कुछ भी नही दिखाई देता।
कहां से आते हैं प्रवासी पक्षी
पक्षियों का प्रवास अभी भी वैज्ञानिकों की नजर में एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। फिर भी इनकी पहचान के लिए इन्हें छल्ले पहनाने की प्रक्रियाओं एवं ट्रांसमीटर की सहायता से इनके प्रवास की गतिविधियों को समझने की कोशिश की जा रही है। इसमें बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी का मुख्य योगदान है। कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य का क्षेत्र असीम पारिस्थितिक, जीवजंतु, वनस्पति, भू-आकृति वैज्ञानिक, धार्मिक एवं प्राकृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहां असंख्य जलीय वनस्पति और जीवजंतु का निवास स्थान है। यह क्षेत्र जलीय पौधे, मछली, स्थानीय पक्षियों एवं प्रवासी पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। यहां कम से कम 40 प्रकार की स्थानीय प्रजातियों एवं 15 दुर्लभ प्रवासी पक्षियों की प्रजातियों पाई जाती है।
अब तक के अध्ययन से यह साबित होता है कि हमारे
देश में प्रवासी पक्षी हिमालय के पार मध्य एवं उत्तरी एशिया एवं पूर्वी व उत्तरी
यूरोप से आते हैं। इनमें लद्दाख, चीन, तिब्बत, जापान, रूस, साइबेरिया, अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान, मंगोलिया, कश्मीर एवं भूटान जैसे देश शामिल हैं। इसके अलावा पश्चिमी
जर्मनी एवं हंगरी जैसे देशों से भी पक्षियों के हमारे देश में प्रवास के लिए आने
के प्रमाण मिलते हैं। इसमें दलमतैन, वार हेदिद, कलहंस, साईवेरियन करेन, ओरिएंटल, क्यूसैंडय,
विस्लग टील आदि प्रजाति शामिल है। {Dalmatian Pelican (Pelicanus
erisups), Indian Darter (Anlinga rufa), Bar-Headed Goose, White Winged Wood
Duck (Cairiva scutulata), Marbled Teal (Marmaronetta anqustirostris), Baers
Pochard (Aythya baeri), Siberian Crane (Grus leuogranus), Indian Skimmer
(Rynchops albicollis), Oriental Qoosander (Merqus goosander), Whistling Teal,
Kingfisher, Purple Moor-Hen, etc;}
खतरे में कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण्य
कुशेश्वरस्थान पक्षी अभ्यारण अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है। कभी यहां के चैर में लाखों की तादाद में विदेशी मेहमान पक्षी कलरव करते थे। अभी इसकी संख्या में काफी गिरावट आई है। इसका एक मुख्य कारण है कुशेश्वरस्थान में कमला बलान के पश्चिमी तटबंध का निर्माण। तटबंध के निर्माण से यहां पानी का आना कम हो गया है। इससे यहाँ क सभी चैर समय से पहले ही सूख जाते है। ज्ञातव्य है कि कुशेवरस्थान अभयारण्य में कमला बलन, पुरानी कमला, कोसी, भूतही एवं जीवछ द्वारा लाए गए बाढ़ से जल प्राप्त होता है, वर्ष भर यह इलाका जलमग्न रहता है फलतः भूमिगत जल का भी पुनर्भरण होता रहता है। स्थानीय लागों का मानना है कि पक्षी विहार के भूमि के बीचों-बीच हाई वोल्टेज बिजली का तार लगाये जाने से भी प्रवासी पक्षियों की जिन्दगी खतरे में पड़ गई है।
हालांकि बिहार सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मुताबिक कुशेश्वरस्थान सहित प्रदेश के सभी पक्षी अभयारण्यों का संचालन अब नयी वेटलैंड नीति के अनुसार होगा। इससे पक्षियों के पालन-पोषण और संरक्षण में मदद मिलेगी। सरकार के इस पहल से एक बार फिर से कुशेश्वरस्थान पक्षी अभयारण्य के विकास की आस जगी है।
संदर्भ:-
1. भारत का राजपत्र, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, दिनांक-19 मई 2016।
2. विभिन्न स्थानीय समाचार पत्रों मंे प्रकाशित आलेख।
लेखक का परिचय:-
रवि रौशन कुमार
शिक्षक,
राजकीय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय,
माधोपट्टी, केवटी, जिला-दरभंगा
बिहार-847306
(विज्ञान एवं पर्यावरण से संबंधित 25 से अधिक आलेखों का प्रकाशन विभिन्न विज्ञान-पत्रिकाओं में हो चुका है।)
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