देश भर में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत बड़े पैमाने पर शिक्षकों की बहाली हुई थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार प्रत्येक 30 बच्चों पर एक शिक्षक की नियुक्ति के निर्देश के आलोक में सभी राज्यों में शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई। इस कड़ी में बिहार में भी शिक्षक नियोजन का कार्य प्रारम्भ हुआ लेकिन यहां 2011 से पहले तक कोई शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित नहीं की गई और ‘सर्टिफिकेट लाओ, नौकरी पाओ’ के तर्ज पर बहाली हुई। बाद में इन्हें जैसे-तैसे दक्षता परीक्षा में उत्तीर्ण करवा कर नीतीश सरकार ने अपनी प्रतिष्ठा बचाई। अब तक चार लाख से भी अधिक नियोजित शिक्षक बिहार में कार्यरत् है। आश्चर्य की बात यह है कि अभी भी बिहार में पौने तीन लाख शिक्षकों की जरूरत है। फिर भी नीतीश सरकार बहाली से लेकर वेतन वृद्धि जैसे तमाम प्रक्रिया का श्रेय खुद लेते दिख जाते हैं। जबकि शिक्षकों की नियुक्ति केन्द्र के दिशानिर्देश के आलोक में हुई थी। वर्तमान सरकार के अलावा कोई अन्य सरकार भी होती तो उसे शिक्षकों की बहाली करनी ही पड़ती।
बिहार की शिक्षा व्यवस्था नियोजित शिक्षकों के दम पर ही चल रही है, इसमें कोई दो राय नहीं है। बिहार ने शिक्षा के क्षेत्र में विगत 10 वर्षों जो थोड़ी बहुत प्रगति की है उसके असली हकदार नियोजित शिक्षक ही हैं। 2003 से लेकर 2010 तक बिहार में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए जो प्रक्रिया अपनाई गई वह किसी से छुपी हुई नहीं है। वहीं 2011 से लेकर अब तक की बहाली में भी शिक्षा विभाग के स्तर से धांधली हुई है। नतीजा फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति के रूप में सबों के सामने है। सरकार के नीतियों में विरोधोभास स्पष्ट नज़र आता है। एक ओर नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता का अभाव होता है वहीं दूसरी ओर सरकार में बैठे लोग इन शिक्षकों के प्रदर्शन और प्रतिफल के ऊपर प्रश्न उठाते हैं। यहां तक कि सरकार ने नियोजित शिक्षकों को राज्यकर्मी मानने से भी साफ इन्कार कर दिया। बिहार में नियोजित शिक्षक सर्वाधिक शोषित कर्मी की सूची में शीर्ष पर है। सरकारी स्तर पर जब इनकी कार्यक्षमता, दक्षता और योग्यता पर प्रश्न चिह्न उठाए जाते हैं तो समाज में इनकी प्रस्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। शिक्षकरूपी गरिमामयी पद की कोई गरिमा शेष नहीं रह गई है। समाज में नियोजित शिक्षकों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। सरकार द्वारा बिहार के शिक्षकों को कई श्रेणियों में बांटकर उनके बीच वैमनस्य भी उत्पन्न करवाया जाता है। अलग-अलग नियमावली और शर्तों के अधीन नियुक्त शिक्षकों का संगठन भी अलग-अलग है और समय-समय पर इनके हितों का टकराव स्पष्ट दिखता है। यही वजह है कि सरकार इन शिक्षकों के जायज मांग को भी बड़ी आसानी से खारिज कर देती है और ये शिक्षक संगठन के लोग देखते रह जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट में समान कार्य के लिए समान वेतन के मामले में भी कमोवेश यही रणनीति अपनाई गई, फलतः फैसला सरकार के पक्ष में आ गया। बावजूद इसके विभिन्न समस्याओं से दो-चार होते ये नियोजित शिक्षक अपनी अंतिम सांस तक समाज के लिए कुछ-न-कुछ कर रहे होते हैं। बिना वेतन और भत्ते के कई महीनों तक गुजारा कैसे किया जाता है, यह कोई नियोजित शिक्षक से पूछे।
ऊपर वर्णित तमाम समस्याओं के बावजूद बिहार के शिक्षकों ने विभिन्न अवसरों पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। नियोजित शिक्षकों के बल पर बिहार में बच्चों के परिणाम बेहतर हुए हैं। विद्यालय में छीजन कम हुआ है। बच्चे विद्यालय में समय बिताने लगे है। नवोदय विद्यालय, सैनिक स्कूल, केन्द्रीय विद्यालय की प्रवेश परीक्षाओं में बच्चों का मार्गदर्शन कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त अलग-अलग प्रतियोगिताओं में बच्चे अब सफल होने लगे हैं। बिहार के नियोजित शिक्षक शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में सूचना-तकनीकी का भी प्रयोग कर रहे हैं। कोरोना काल में बच्चों को आॅनलाईन पढ़ाकर उनके शैक्षणिक क्षति को पाटने का प्रयास किया जा रहा है।
इतना ही नहीं कई प्रतिभाशाली शिक्षक स्वयं भी विभिन्न लोक सेवा आयोगों की परीक्षा, कर्मचारी चयन आयोग की परीक्षा एवं अन्य कई प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो कर राज्य एवं देश की सेवा में जा रहे हैं। लगभग प्रत्येक वर्ष सैकड़ों की संख्या में नियोजित शिक्षक इन परीक्षाओं में सफल हो रहे हैं। प्रत्येक वर्ष बिहार लोक सेवा आयोग एवं संघ लोक सेवा आयोग में उच्च पदों पर चयनित होकर ये नियोजित शिक्षक अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। हाल ही में 64वीं बीपीएससी का फाइनल रिजल्ट प्रकाशित हुआ है जिसमें दर्जनों नियोजित शिक्षकों ने सफलता पाई है।
इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद बिहार सरकार के मुखिया श्रीमान नीतीश कुमार जी द्वारा कई मौकों पर नियोजित शिक्षकों को नीचा दिखाने का कार्य किया गया। शिक्षकों के अपमान का एक भी मौका सत्ता पक्ष के लोग नहीं छोड़ते हैं। पूर्वाग्रहों से ग्रसित होकर सरकार का यह रवैया नियोजित शिक्षकों के मनोबल को गिराने के लिए काफी है। लेकिन अब विभाग को यह समझना होगा कि बिहार में अगर शिक्षा व्यवस्था पटरी पर लौट रही है तो इसका श्रेय नियोजित शिक्षकों को ही जाता है।
सरकार नियोजित शिक्षकों के विरूद्ध लाख षड्यंत्र रच ले; लेकिन अन्ततः उन्हें अपनी नीतियों को लागू करवाने के लिए इन्हीं शिक्षकों का सहारा लेना पड़ता है। आज सरकार की लगभग सभी योजनाओं के क्रियान्वयन में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षकों का सहयोग लिया जाता है। गैर-शैक्षणिक कार्यों में बड़े पैमाने पर शिक्षाकर्मियों की प्रतिनियुक्ति की जाती है। सिर्फ दिखावा के लिए शीर्ष अधिकारी पत्र निकाल कर गैर-शैक्षणिक कार्यों में प्रतिनियुक्ति को अवैध घोषित करते हैं। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि आज भी सरकार के विभिन्न विभागों में शिक्षक की प्रतिनियुक्ति की गई है जहां उनसे गैर-शैक्षणिक कार्य लिया जा रहा है। चुनाव और आपदा की आड़ में सरकार बड़े पैमाने पर इन शिक्षकों से मजदूरी करवा रही है। ये नियोजित शिक्षक किसी निरीह प्राणी की भांति अधिकारियों के हुक्म की तामिल करते देखे जा सकते हैं।
उपर्युक्त तमाम विवचेन से यह स्पष्ट है कि बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं है। कुछ एक उदाहरणों को आधार बनाकर और पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सभी नियोजित शिक्षकों के प्रति दोएम दर्जे का व्यवहार करना एवं उनके अधिकारों का हनन करना कहीं से उचित नहीं है। सरकार को चाहिए कि इन नियोजित शिक्षकों की समस्या पर गम्भीरता से विचार करें। इनके वेतन-भत्तों से जुड़ी अनियमितता एवं सेवा शत्र्त को लागू करने में हो रही देरी पर ध्यान दिया जाए। इन शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों में न लगाकर इन्हें अधिक-से-अधिक अध्ययन-अध्यापन का मौका दिया जाए ताकि बिहार में शिक्षा व्यवस्था सुदृढ़ हो सके।
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रवि रौशन कुमार
एक नियोजित शिक्षक,
दरभंगा, बिहार।
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