संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय राष्ट्रीय दिनदर्शिका’ विषय पर दो दिवसीय संगोष्ठी विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में दिनांक-22-23 अप्रैल, 2022 (वैशाख 2-3, 1944) को आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में मैं भी आमंत्रित था।
इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए मैं 21 अप्रैल को पटना-इंदौर एक्सप्रेस (19314) से उज्जैन पहुँचा। उज्जैन स्टेशन से आयोजकों ने हमें अपनी कार से होटल तक पहुँचाया। होटल भगवती पार्क में हमलोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई थी। देशभर से आए शिक्षक, खगोलविद्, ज्योतिषाचार्य, वैज्ञानिक एवं विज्ञान संचारकों से मिलने का मौका मिला। वैसे यह पहला मौका नहीं था जब हम इस तरह के लोगों से मिल रहे थे। इससे पहले दर्जनों ऐसे सेमिनार, कार्यशालाएं, कैम्प आदि में समूह में कार्य करने का अवसर मिल चुका था। हमारे होटल में तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के प्रतिभागी ठहरे हुए थे। बिहार से 5 लोग थे। पटना से श्री प्रेम कुमार सर भी आए थे 21 अप्रैल को ही शाम में उन्होंने उज्जैन से तकरीबन 17 किमी दूर सेवाधाम आश्रम जाने का मन बनाया। उन्होंने मुझे भी वहां जाने के लिए कहा। मैं भी तैयार हो गया। आश्रम की गाड़ी से वहां हमलोग तकरीबन 8 बजे रात मंे पहुंचे। आश्रम में पहुंच कर ऐसा लगा मानो किसी देवस्थल में हूँ। यहां निःशक्त जनों की सेवा निस्वार्थ भाव से की जाती है। अनाथ, वृद्ध, बीमार, विक्षिप्त तथा असहाय लोगों को शरण दिया जाता है। साफ-सफाई को देखकर मन प्रसन्न हो गया। सभी आयुवर्ग के लोगों के लिए अलग-अलग प्रभाग (ब्लॉक) बनाए गए थे। वृद्धजनों के अलग, बच्चों के लिए अलग, विक्षिप्त एवं मानसिक रूप से कमजोर लोगों के लिए अलग। प्रतिदिन सभी के लिए स्वादिष्ट व पौष्टिक भोजन की व्यवस्था की जाती है। सैकड़ो स्वयंसेवक वहां कार्यरत् थे। जिसमें डाक्टर एवं नर्सें भी शामिल हैं। आश्रम के कर्ताधर्ता सुधीर भाई की सौम्यता एवं सादगी से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उन्होंने स्वयं हमें अलग-अलग वार्ड में ले जाकर उन सभी निःशक्त एवं असहाय लोगों (जिनमें साक्षात ईश्वर का वास होता है।) से भेंट करवाया। आश्रम में एक गौशाला भी है। जिसमें गौमाताओं को बेहद आरामदेह माहौल में रखा गया है। खाने-पीने के लिए उपयोग में आने वाले कई सामग्रियां आश्रम में ही उपजाये जाते हैं। आश्रम से लौटते वक्त सुधीर भाई ने हमलोगों को पुस्तक और माला देकर विदा किया।
इस प्रकार संगोष्ठी के आयोजन से ठीक एक दिन पूर्व मेरे अंदर एक नई ऊर्जा और विश्वास का संचार हुआ। मुझे ऐसा लगा मानो उज्जैन आना सफल रहा।
अब जिस उद्देश्य से उज्जैन आया था उसकी बात करता हूँ। दिनांक-22 अप्रैल को सुबह 8 बजे हमलोगों को होटल से बस के द्वारा कार्यक्रम स्थल (विक्रम विश्वविद्यालय) ले जाया गया। वहाँ पहूंच कर हमलोगों ने नाश्ता किया और अपना पंजीकरण करवाया तथा संगोष्ठी के लिए आवश्यक औपचारिकताएं पूरी की। इसके बाद हमलोग विश्वविद्यालय के सभागार में पहुँचे। वहाँ देशभर से पधारे विद्वान वक्ताओं द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कैलेन्डर के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही थी। इस कड़ी में भारत के प्रमुख कैलेन्डर एवं ग्रेगोरियन कैलेंडर के बीच विभेद एवं कैलेंडर निर्माण के पीछे की संकल्पनाओं को विस्तार से बताया गया। दिनदर्शिका एवं पंचांग के निर्माण में किन खगोलीय घटनाओं का योगदान है इस विषय में भी प्रस्तुति दी गई।
दोपहर में भोजन के बाद लगभग 1 बजे हमलोगों को वराहमिहिर खगोलीय वेधशाला, डोंगला (म.प्र.) घुमाने ले जाया गया। यह स्थल कर्क रेखा पर स्थित है। यह स्थान कर्करेखा एवं याम्योत्तर रेखा (meridian) का मिलन बिन्दु भी कहलाता है। वेधशाला पहुँचकर हमलोगों ने वहाँ स्थापित विशाल खगोलीय दूरबीन का अवलोकन किया। इसके अतिरिक्त वेधशाला में मौजूद विभिन्न खगोलीय उपकरणों को भी देखा। इसी क्रम में काल गणना से संबंधी यंत्र भास्कर यंत्र, सूर्य घड़ी, शंकु, दिगांश यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र इत्यादि अवलोकनीय है।
डोंगला वेधशाला प्रांगण में स्थित विशाल प्रेक्षागृह (ऑडिटोरियम) में विशेषज्ञों ने काल गणना के इतिहास एवं इसके वैज्ञानिक पहलुओं को पॉवरप्वांइंट प्रस्तुति के माध्यम से विस्तार से समझाया। इस दौरान जूम एप पर ऑनलाईन जुड़े विशेषज्ञों ने भी अपनी प्रस्तुति दी। संध्याकाल में स्काई वाचिंग कार्यक्रम का आयोजन विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। अंधेरी राम में आकाश में तारों को निहारना भला किसे पसंद नहीं है। हमलोगों ने अत्यन्त उत्साह से इस कार्यक्रम में भाग लिया। विभिन्न तारामंडल, ग्रह, क्षुद्रग्रहों एवं अन्य आकाशीय पिंडों के बारे जानकारी प्राप्त की। विभिन्न तारों के संयोग से किस प्रकार तारामंडल का निर्माण होता है इसे भी लेजर रोशनी की सहायता से समझाया गया। डोंगला में ही हमलोगों के लिए रात्रि भोजन की व्यवस्था की गई थी। भोजन के बाद हमलोग उज्जैन के लिए प्रस्थान कर गए। रात्रि लगभग 12 बजे हम उज्जैन स्थित अपने होटल पहुँचे।
एक बात बताना तो भूल ही गया। होटल में मेरे रूम पार्टनर के रूप में छत्तीसगढ़ के एक शिक्षक श्री अशोक कुमार जी थे। वे रायपुर में यूपीएससी एवं राज्य लोकसेवा आयोग की परीक्षा के लिए बच्चों को तैयारी करवाते हैं। उनके साथ दो दिनों में काफी कुछ सीखने का अवसर मिला। हम दोनों ने रात में योजना बना ली की अगली सुबह हमलोग महाकाल के दर्शन के लिए जाएंगे। हमारी इस योजना में तेलंगाना चार और शिक्षक भी शामिल हो गए। हम सभी सुबह 4 बजे ही उठकर स्नानादि कर बाबा महाकाल के दर्शन के लिए निकल पड़े। लम्बी कतारों से होते हुए आखिर हमलोग बाबा के दर्शन करने में सफल हुए। महाकाल के मंदिर में प्रवेश के उपरान्त ऐसा महसूस होता है मानों आप सभी दुःख व चिंताओं से मुक्त हो चुके हैं। अलग प्रकार की शांति और पवित्रता का भाव मन में उमरने लगता है। महाकाल के दर्शन करने के बाद हमलोगों ने देखा कि अभी कार्यक्रम शुरू होने में दो-तीन घंटे शेष हैं। हमलोगों ने तय किया कि क्यों ने उज्जैन स्थित सभी मंदिरों का भ्रमण किया जाए। हमलोगों ने एक गाड़ी बुक की और निकल पड़े उज्जैन दर्शन के लिए। इस क्रम में सबसे पहले माँ हरसिद्धि के दर्शन हुए, फिर भतृहरि की गुफा के दर्शन के साथ ही हमलोगों ने काल भैरव के दर्शन किए, इसके बाद श्रीगढ़ कालिका उज्जैन, गए, उसके बाद मंगलधाम मंदिर। ऐसी मान्यता है कि मंगलधाम मंदिर वह स्थान है जहां मंगल ग्रह का जन्म हुआ था। यह स्थान कर्क रेखा पर स्थित है। उज्जैन दर्शन का अगला पराव था महर्षि सांदीपनि आश्रम यह वहीं स्थान है जहाँ भगवान कृष्ण ने शिक्षा प्राप्त की थी। कृष्ण-सुदामा की दोस्ती भी यहीं हुई थी। इस आश्रम में श्री कृष्ण के जीवन से जुड़े अनेक घटनाओं को चित्रों के माध्यम से उकेरा गया है। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण सहित उनके सभी सहपाठियों को उनके गुरू महर्षि सांदीपनि ने 64 विद्याओं का ज्ञान दिया था। इन सभी 64 विद्याओं से जुड़े चित्र भी दर्शक दीर्घा में लगाए गए हैं जिन्हें देखकर मन प्रफ्फुलित हो उठा।
अबतक 10 बज चुके थे। हमलोगो ने विक्रम विश्वविद्यालय का रूख किया। वहाँ भारतीय राष्ट्रीय कैलेंण्डर पर आधारित एक प्रदर्शनी का उद्घाटन कार्यक्रम चल रहा था। हमलोगों ने जल्दी से नाश्ता कर सभागार में प्रवेश कर गए। प्रथम सत्र में देश भर से आए खगोलविद् एवं ज्योतिषाचार्यों ने भारतीय राष्ट्रीय कैलेण्डर के महत्व एवं उसकी उपयोगिता पर अपने विचार रखे। इसके अलावा प्रतिभागियों के विचार भी लिए गए। यह सत्र बेहद ज्ञानोपयोगी रहा। कुछ विद्वान शक् संवत् को अपनाने के बारे में कह रहे थे तो ज्यादातर विद्वानों ने विक्रम संवत को अपनाने की वकालत की।
समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री श्री मोहन यादव तथा विशिष्ट अतिथि के तौर पर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री ओम प्रकाश सकलेचा ने भी अपने विचार रखे। उन्होंने भारत के गौरवाशाली इतिहास एवं यहाँ के राजाओं के द्वारा चलाए गए विभिन्न संवतों (दिनदर्शिका) की महत्ता पर प्रकाश डाला।
अब समय था उज्जैन को विदा कहने का। हमारे कई मित्र 23 अप्रैल को ही शाम में अपने-अपने गृह नगर के लिए प्रस्थान कर गए। लेकिन मेरा टिकट 25 अप्रैल का था। क्योंकि 24 अप्रैल को रविवार था और मैंने साँची घुमने का मन बना लिया था, जो कि भोपाल से 46 किमी की दूरी पर स्थित है। मैं 23 अप्रैल को उज्जैन में ही रहा। आयोजकों की ओर डिनर की व्यवस्था थी। मेरे साथ मेरे कुछ और प्रतिभागी भी रात में रूके थे। 24 अप्रैल की सुबह 6 बजे मैं उज्जैन जंक्शन के लिए निकल पड़ा। 7ः30 बजे जयपुर-भोपाल एक्सप्रेस (19711) से भोपाल के लिए प्रस्थान कर गया। 4 घंटे की यात्रा के बाद मैं भोपाल पहुँचा। स्टेशन से बाहर निकलकर मैंने पहले भोजन किया फिर नादरा बस अड्डा पहुँचा। यहीं से साँची जाने के लिए बसें मिलती हैं। मैं सवा 12 बजे साँची जाने वाली बस में बैठ चुका था। दो घंटे की यात्रा के बाद मैं साँची पहुँच चुका था। जैसे कि आप जानते हैं कि साँची स्तूप मध्यप्रदेश राज्य के रायसेन जिले में साँची नगर के पास एक पहाड़ी पर स्थित है। यह बेतवा नदी के किनारे है। यहाँ छोटे-बड़े अनेक स्तूप हैं। लेकिन स्तूप संख्या-2 सबसे बड़ा है। आम-तौर पर चित्रों में जिस साँची स्तूप को आप देखते हैं वही मुख्य स्तूप है जिसके चारों ओर चार तोरण द्वार हैं। मैं लगभग 2 बजे यहाँ पहुँचा था। नीचे ही बायीं ओर टिकट काउंटर बना है जहाँ मैंने 40 रूपए देकर एक टिकट लिया। मैंने संग्रहालय घुमने के लिए 5 रूपए का एक और टिकट भी ले लिया। (ज्ञात हो कि टिकट काउंटर के पास ही एक संग्रहालय है जिसमें घुमने के लिए भी आपको टिकट की जरूरत होती है।) धूप अधिक होने के कारण मैंने पहाड़ी पर जाने के लिए ऑटो ले लिया था। वैसे आप चाहें तो पैदल भी जा सकते हैं। चढ़ाई बहुत अधिक नहीं है। जैसे-जैसे ऊपर चढ़ रहा था मैं और अधिक रोमांचित हो रहा था। पहाड़ी से नीचे साँची नगर का मनोरम दृश्य का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है। सांची स्तूप तक जाने के लिए पहले अपना टिकट दिखाना होता है। पास ही बने काउंटर पर अपना टिकट दिखाकर मैं साँची स्तूप के दर्शन के लिए आगे बढ़ा। मैंने सामने दिख रहे दृश्यों को अपने फोन के कैमरे में कैद करना शुरू कर दिया। साँची स्तूप को निकट से देखने की खुशी अवर्णनीय है। तोरण द्वारों पर बनी पत्थर की जीवंत आकृत्तियाँ, स्तूप के उपर बने परिक्रमा पथ, स्तूप की चाहरदिवारी, स्तूप के आस-पास बने विशालकाय स्तम्भ, मंदिर के अवशेष, बौद्ध भिक्षुओं के लिए बनाए गए विहार, अनेकों छोटे-बड़े स्तूप के अवशेष, एवं अन्य स्मारक हमें अपने भारत की गौरवशाली इतिहास की गाथा बयान कर रहे थे। इन तमाम स्मारकों को नदजीक से देखकर, स्पर्श कर सुखद अनुभूति हो रही थी। इन स्मारकों के अतिरिक्त यहाँ एक बौद्ध मंदिर भी है जिसे चेतियगिरि विहार के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर सन् 1952 में बनवाया गया था। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू ने किया था।
सांची स्तूप पर लगभग एक घंटे बिताने के बाद मैं पहाड़ी से पैदल ही नीचे उतर गया। अब समय था संग्रहालय घुमने का। मैंने संग्रहालय में प्रवेश किया। यहाँ सन् 1919 में सर जॉन मार्शल द्वारा साँची में किए गए उत्खनन एवं संग्रहण कार्य के उपरान्त प्रकाश में आए पुरावशेषों को प्रदर्शित किया गया है। 1966 तक इन पुरावशेषों को पहाड़ी पर बने संग्रहालय में ही संग्रहित किया था। लेकिन 1966 में इसे नीचे बने नए भवन में स्थानांतरित कर दिया गया। यह संग्रहालय पूर्णतया वातानुकूलित हैं एवं यहां सभी पुरावशेषों को बेहद ही सुंदर ढ़ंग से प्रदर्शित किया गया है। संग्रहालय में कई मुर्तियां, लौह उपकरण, शीर्ष विहीन बौद्ध देवी, स्तम्भ, एकाश्म सिंह शीर्ष, सर जॉन मार्शन की मेज आदि प्रदर्शित किए गए है। जहाँ संग्रहालय है वहीं पास में सर जॉन मार्शन स्मृति भवन है। यह वही भवन है जहां रहकर मार्शल ने साँची के पहाड़ी पर उत्खनन कार्य करवाया करते थे।
साँची भ्रमण के बाद मैं भोपाल के लिए निकल गया। बस साढ़े पाँच बजे भोपाल पहुंच गई। अगली सुबह पौने आठ बजे मेरी फ्लाईट थी। मैंने पास में ही एक होटल में कमरा बुक कर रात्रि विश्राम किया।
सबेरे जल्दी उठकर स्नानादि करके होटल से चेक-आउट कर गया। ऑटो से सुबह 6 बजे मैं राजा भोज अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँच चुका था। यह मेरे जीवन की पहली हवाई यात्रा थी। मैं अत्यन्त रोमांचित था। मैंने सिर्फ हवाई यात्रा नहीं की थी लेकिन हवाई यात्रा की सभी प्रक्रियाओं से अवगत था। अतः एयरपोर्ट के मुख्यद्वारा पर सुरक्षा जाँच के बाद अंदर वेटिंग एरिया में बैठ गया। ठीक पौने 7 बजे चेक-इन के लिए बुलाया गया। (अर्थात 7ः45 वाली दिल्ली जाने वाली फ्लाईट के सभी यात्रियों को अपने सामानों को स्कैन करवाना था।) सभी प्रक्रिया के बाद गेट नम्बर-4 के पास लगी कुर्सी पर मैं बैठ गया। मेरी फ्लाईट के लिए बोरिंग गेट नं0-4 से होने वाली थी। निर्धारित समय 7 बजे हमलोगों को फ्लाईट में बैठा दिया गया। हवाई यात्रा का यह पहला अनुभव अपने-आप में खास था। सीट नम्बर 19ए (जो कि विंडो सीट थी) से बाहर का नजारा देखना बेहद सुखद था। ठीक 7ः45 में प्लेन टेक-ऑफ कर गया। हवाई यात्रा अपने-आप में एक रोमांचकारी अनुभव देने वाला होता है। आसमान से धरती को देखने पर ऐसा लगता है मानों किसी क्षेत्रविशेष के प्राकृतिक मानचित्र को देख रहा हूँ। विंडो सीट होने के कारण यात्रा और भी आनन्ददायक रहा मेरे लिए। इसी दौरान मैंने पाया कि मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के पूर्व महासचिव दिग्विजय सिंह भी उसी प्लेन से यात्रा कर रहे हैं।
9 बजे इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली पर प्लेन उतर चुका था। (बता दे कि मेरी फ्लाईट भोपाल से दिल्ली होते हुए पटना के लिए थी। इसलिए दिल्ली में 3 घंटे का ले-ओवर था। अर्थात् दिल्ली हवाई अड्डा पर 3 घंटे रूकना पड़ा।) दिल्ली हवाई अड्डा की चकाचौंध उतनी अप्रत्याशित नहीं थी मेरे लिए। किसी नए स्थान पर खुद को अनुकूलित कर लेने के गुण के कारण मैं इन चीजों को सामान्य रूप से लेते हुए अपने साथ लाए हुए किताब को पलटने लगा। किताब पढ़ने के साथ-साथ मेरे मन में कुछ घंटे पहले की हवाई यात्रा एक रोमांच उत्पन्न कर रहा था। नई दिल्ली से पटना के लिए मेरी फ्लाईट 12ः25 बजे दोपहर में थी तकरीबन सबा ग्यारह बजे हमलोगों को गेट नम्बर 33 से बोरिंग के लिए बुलाया गया। मैं अपने निर्धारित सीट 15एफ (यह भी विंडो सीट) पर जाकर बैठ गया। अब अपने गृृह राज्य बिहार के लिए प्रस्थान करने वाला था। दोपहर 1ः45 बजे मैं पटना में था।
कैसी लगी आपको मेरी यह यात्रा वृत्तांत? जरूर बताईगा। अगर आप भी कहीं घूमने जाते हैं तो उससे जुड़ी यात्रा-वृत्तांत जरूर लिखिए और अपने मित्रों के साथ साझा कीजिए।
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रवि रौशन कुमार
शिक्षक
U.H.S. Madhopatti, Darbhanga
Very well documented sir .
ReplyDeleteThank You. Kindly mention your name plz
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