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गांधीजी केर वैज्ञानिक दृष्टिकोण

      गांधीजी के लेल भारत स्वयं पर प्रयोग करबाक हेतु एक आदर्श स्थल छल आओर वो स्वयं के एकटा वैज्ञानिकक रूप मे देखैत छलाह, जे विज्ञान पर प्रमुख तर्कक भ्रांति केर साबित करबाक लेल प्रयोग कय रहल छलाह। यद्यपि अपन प्रारंभिक वर्ष मे आधुनिक विज्ञानक गंभीर आलोचक भेलाक बादो गांधी कालान्तर मे एक नव विज्ञान आओर एकर अभ्यासक संभावना पर बेस ध्यान केंद्रित करबाक लेल प्रयासरत रहलाह।

गांधीजीक मानब छल जे वैज्ञानिक केर सचेत आओर आत्मचिंतनशील होमक चाही। हुनक स्पष्ट कहब छल जे वैज्ञानिक केर उचित स्थान शोषणमूलक बाजार अथवा दमघोंटू राज्यक संग नहि अपितु आमजनक कल्याणक संग अछि। विज्ञान मे गांधीक सबटा प्रयोग एहि क्षेत्र के निखारब आओर स्पष्ट करबा दिस रहल। वैज्ञानिक लोकनि के मार्गदर्शन करबाक लेल हुनक मनपसंद संदेश छल- ‘‘कोनो आविष्कार वा उद्यम करबा सँ पहिने समाज में गरीब आओर निःसहाय व्यक्ति केर एक बेर याद करि, आओर विचार करि जे आहाँक एहि काज सँ हुनक जीवन मे किछु परिवर्तन आयत अथवा नहि।’’

भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक लोकनि के संबोधित करैत गांधी जी एक बेर कहने रहथि जे बाहरी अनुसंधान के आंतरिक अनुसंधान सँ जोड़ब आवश्यक अछि। आंतरिक अनुसंधान सँ गांधीजीक तात्पर्य रहस्यवादी अनुभवक एहेन क्षेत्र सँ छलनि, जाहि मे विज्ञानक प्रश्न, नैतिक ओ सामाजिक दुनू के परिधि मे राखल गेल छल। एहि तरहे गांधीक विज्ञान अव्यक्त विषय सभकेँ  सेहो आवाज लगबैत छल। अहिंसा केर विज्ञान पर बहस करैत गांधीजी जोर दैत कहैत छलाह जे मानक तरीका आओर कर्मचारी एहि लक्ष्य केर पाछा नहि क सकैत छैथ। अहिंसा केर विज्ञान के संगठनक अपन तरीका आओर साधनक आवश्यकता होएत: बेसी वैज्ञानिक सटीकता, आत्मका केर अधिक पीड़ा, बेसी धर्य आओर युद्ध केर साधनक आविष्कार संगहि एकर समेकन लेल आवश्यकता सँ अधिक संसाधन केर छोड़ने बिना विश्व शांन्ति केर प्राप्ति असंभव अछि। गांधीजी केर एक बहुचर्चित कथन अछि - ‘‘प्रकृति मानवक आवश्यकताक पूर्ति कय सकैत अछि मुदा ओकर लोभक नहि।’’

गांधीजी केर आश्रम आओर हुनक सेवा संघक मुख्य उद्देश्य एहेन सत्याग्रही वैज्ञानिक तैयार करब छल जे अपन प्रयोगक माध्यमे एकटा सामुदायिक कार्यकर्त्ताक अवधारणा केर स्पष्ट करबाक प्रयत्न करथि। ओ विज्ञान केर अभ्यास मे समुदाय केर सम्मिलित करबाक आवश्यकता पर बेस जोर दैत छलथि।

हुनक विचार छल जे, मात्र भाषण ओ व्याख्यान सँ कोनो लाभ नहि अछि, हमरा सबके वैज्ञानिक प्रयोग करबाक चाही आओर अपन प्रयोगक परिणाम केर घोषणा सेहो करबाक चाही। विज्ञान केर अभ्यास पर गांधी जोर दैत कहैत छथि जे वैज्ञानिक योग्यता सँ अधिक अनुसंधान के लेल एक दृष्टिकोणक आवश्यकता अछि। गांधी केर पद्धत्ति मे संसाधनक कमी विज्ञानक अभ्यान मे बाधा नहि बनि सकैत अछि। वो वैज्ञानिक लोकनि सँ बलिदान आओर समर्पणक अपेक्षा रखैत छलाह। गांधीजी एहि बात पर सेहो जोर दैत छलाह कि टका सँ बेसी मजबूत आस्था आओर इच्छुक लोकक आवश्यकता अछि। हुनक इच्छा छल जे वैज्ञानिक लोकनि केर नव पीढ़ी मूल शोध करथि आओर हुनक ई कृत्य अनुकरणीय हो।

पश्चिमी देश सभक भौतिक प्रगति सँ गांधीजी चकित छलाह। गांधी केँ एहेन प्रगतिक कोनो मोह नहि छलनि। वास्तवमे हुनक विचार छल जे ‘‘ईश्वरक कृपा सँ भारत पश्चिमी देशक तर्ज पर आगू बढ़वाक सँ वंचित रहि गेल। तखने ओ भौतिकवाद के हमलाक विरोध करबाक अपन विशेष मिशन केर पूरा कय सकल।’’ ओ अपर पद्धत्ति में तथ्य आओर मूल्य, विज्ञान आओर धर्म के मध्य संबंध केर पुनर्गठित करबाक मांग कयलनि। एहि बात पर जोर दैत कि वैज्ञानिक जे करैत छथि ओकरा अर्थ प्रदान करथि, ओ इहो स्पष्ट कयलनि जे कोनो समस्या के मात्र तकनीकी समाधान मे हुनक बेस रूचि नहि होमक चाही, अपितु अन्य वैकल्पिक समाधानक दिशा मे सेहो विचार करबाक चाही। वैज्ञानिक केर भूमिका मात्र तथ्य के परिधि मे नहि अपितु अर्थ (मूल्य) निर्माण मे सेहो होइत अछि।

गाँधीजी के लेल चरखा एक नव तकनीकक प्रतीक छल। प्रकृतिक संग मनुख के एक अद्भुत संबंध अछि। एक गोट एहेन संबंध जकरा केवल सक्रिय, परस्पर सहयोग करय बला लोक सभक द्वारा अस्तित्व में आनल जा सकैछ। एहि दिशा में सहयोग के महत्वहीन बुझै बला लोकक लेल ई अभ्यास अर्थरहित अछि।

गांधीजी केर ब्रह्माण्ड विज्ञान मे प्रकृति, मनुष्य आओर ईश्वरक बीच संबंध के खोज मे शरीर, मन तथा आत्मा केर एकताक आवश्यकता होइत अछि। कोनो विज्ञान आकाश सँ परिपूर्ण रूप मे नहि खसल अछि। सभ विज्ञान अनुभव केर माध्यम सँ विकसित ओ निर्मित होइत अछि। पूर्णता विज्ञानक गुण नहि अछि। मनुष्य अथवा मनुष्य द्वारा रचित एहि विज्ञान लेल सर्पूण पूर्णता असंभव अछि। गांधी विज्ञान विरोधी नहि छलाह, ओना इ गप साधारणतः गलत बूझल जायत अछि। मुदा ओ मानव-प्रकृति आओर तथ्य-मूल्य संबंध सभक एक नव ब्रह्माण्ड विज्ञान प्रदान कय एक सार्वभौमिक संदेश सेहो देने छलाह, जकर वो अपन विभिन्न प्रयोगक माध्यमे व्यक्ति कयलनि।

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रवि रौशन कुमार

शिक्षक,

राजकीय उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय, माधोपट्टी

प्रखण्ड-केवटी, जिला-दरभंगा।


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