*पर्यावरण अध्ययन के प्रति जनचेतना की आवश्यकता* मनुष्य इस समय जिन भौतिक सुख सुविधाओं और सम्पदाओं का उपभोग कर रहा है, वे सभी विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान के वरदान है, ‘‘लेकिन यदि विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं किया गया तो इस वरदान को अभिशाप में बदलते देर नहीं लगेगी। ऊर्जा उत्पादनों के संयंत्र, खनन, रासायनिक एवं अन्य उद्योग आज के मनुष्य के कल्याण के लिए अपरिहार्य बन गये हैं। लेकिन ये ही चीजें हमारी बहुमूल्य सम्पदाओं, यथा, वन, जल, वायु एवं मृदा आदि को अपूर्णीय क्षति भी पहुँचा सकती है। पर्यावरणीय अवनयन के खतरे नाभकीय दुर्घटनाओं के समकक्ष खतरनाक है, लेकिन इस भय से औद्योगीकरण एवं विकास योजनाओं को बन्द नहीं किया जा सकता। इसलिए हम सभी को एक मध्यम मार्ग अपनाने की जरूरत है। इस मध्यम मार्ग का अर्थ है सम्पोषित अथवा निर्वहनीय विकास की नीति को अपनाना। मनुष्य में निर्वहनीय विकास एवं उसकी जीवनषैली को अपनाने की समझ तो सम्यक पर्यावरणीय अध्ययन के प्रति जनचेतना को प्रबुद्ध करने से ही उत्पन्न हो सकती है।’’ पर्यावरण अध्ययन के प्रति जन...
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