Skip to main content

लेखन सहयोग

रवि रौशन कुमार, शिक्षक, राजकीय मध्य विद्यालय माधोपट्टी

-:: लेखन सहयोग ::-

बिहार पाठ्यचर्या की रुपरेखा-2025 

भाग 8 : मुक्त और डिजिटल शिक्षा

2024 

बिहार के विद्यालयों में कार्यरत प्रधान शिक्षक, प्रधानाध्यापकों के नेतृत्व क्षमता संवर्धन हेतु विकसित प्रधानाध्यापक हस्तपुस्तिका

2023 

Click Here

कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए शिक्षा विभाग द्वारा प्रकाशित कंप्यूटर की पाठ्यपुस्तक 'मैं और मेरा कंप्यूटर' 

2024 


Click Here

 

TRE-1 में चयनित विद्यालय अध्यापकों के लिए आयोजित इंडक्शन ट्रेनिंग हेतु विकसित ICT प्रशिक्षण मोड्यूल 

2024 

सेवाकालीन शिक्षक प्रशिक्षण मोड्यूल 'नवाचार' 

2025 




बुनियादी साक्षरता एवं संख्या ज्ञान 'शिक्षक संदर्शिका'

कक्षा 1 से 3 में शिक्षण कार्य हेतु


Click Here

 

              

 

 

Comments

Popular posts from this blog

बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में जन-संचार माध्यमों की भूमिका

व र्तमान समय में जन-संचार माध्यम एक बहुत ही सशक्त माध्यम है जिसका बच्चों के मन- मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है. रेडियो, टीवी, अखबार, पत्रिकाएं, कंप्यूटर, आदि ऐसे माध्यम हैं जिनके द्वारा कोई भी बात प्रभावपूर्ण तरीके से बच्चों के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है. इन माध्यमों का बच्चों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ता है. जैसे इन माध्यमों के द्वारा विभिन्न प्रकार के मनोरंजक, सूचना व ज्ञान आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं. एक ओर जहां इन कार्यक्रमों से बच्चों में अपने आस-पास की दुनियां के विषय में समझ बढ़ती है वहीं कभी-कभी ये उन्हें संकीर्णता की ओर भी ले जाते है. साथ ही आवश्यकता से अधिक समय इन माध्यमों को देने से शारीरिक विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. अतः यह अति अवश्यक है कि बाल-विकास  में जन-संचार माध्यमों का न्यायसंगत तथा विवेकपूर्ण प्रयोग किया जाय. इस आलेख में बाल-विकास के संदर्भ में जन-संचार माध्यमों के प्रभावों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है. जन-संचार माध्यम : एक परिचय         जन-संचार (Mass-Communic...

प्लास्टिक वरदान या अभिशाप

         सभी वैज्ञानिक आविष्कारों के पीछे समाज कल्याण की भावना छिपी रहती है। दुनिया के तमाम आविष्कार जनहित के लिये ही होता है। परंतु प्रत्येक कृत्रिम सुख सुविधाओं के अपने लाभ और हानि होती है। जब किसी वस्तु या सुविधा के लाभ उसके हानि की तुलना में कई गुना अधिक होता है तब हम उन नवीन आविष्कार को अपना लेते हैं। कभी-कभी दूरगामी प्रभावों की चिंता किये बिना ही हम किसी नवीन आविष्कारों को सिर्फ इसलिये भी अपना लेते है क्योंकि वे हमारे श्रम, समय और पैसे की बचत करता है। प्लास्टिक का ही उदाहरण अगर  लिया जाय तो हम देखते हैं कि जब प्लास्टिक या पॉलीथिन आदि का इस्तेमाल प्रारम्भ हुआ था उस वक़्त यह किसी वरदान से कम नहीं था। धरल्ले से प्लास्टिक प्रयोग शुरू हो गया। रोजमर्रा के जीवन में प्लास्टिक ने अपनी पैठ बना ली। लोगों ने भी इसे हाथोंहाथ लेना शुरू किया। कपड़े और जूट के बने थैले लेकर चलने में शर्मिंदगी का एहसास होने लगा। लोग खाली हाथ बाजार जाते और प्लास्टिक के ढेर सारे थैलों में चीजें भर-भर कर घर लाने लगे थे। लेकिन समय के साथ-साथ पॉलीथिन के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे। आज ये गम...

पर्यावरण अध्ययन के प्रति जन चेतना की आवश्यकता

*पर्यावरण अध्ययन के प्रति जनचेतना की आवश्यकता*       मनुष्य इस समय जिन भौतिक सुख सुविधाओं और सम्पदाओं का उपभोग कर रहा है, वे सभी विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान के वरदान है, ‘‘लेकिन यदि विज्ञान एवं तकनीकी ज्ञान का बुद्धिमत्तापूर्ण उपयोग नहीं किया गया तो इस वरदान को अभिशाप में बदलते देर नहीं लगेगी। ऊर्जा उत्पादनों के संयंत्र, खनन, रासायनिक एवं अन्य उद्योग आज के मनुष्य के कल्याण के लिए अपरिहार्य बन गये हैं। लेकिन ये ही चीजें हमारी बहुमूल्य सम्पदाओं, यथा, वन, जल, वायु एवं मृदा आदि को अपूर्णीय क्षति भी पहुँचा सकती है। पर्यावरणीय अवनयन के खतरे नाभकीय दुर्घटनाओं के समकक्ष खतरनाक है, लेकिन इस भय से औद्योगीकरण एवं विकास योजनाओं को बन्द नहीं किया जा सकता। इसलिए हम सभी को एक मध्यम मार्ग अपनाने की जरूरत है। इस मध्यम मार्ग का अर्थ है सम्पोषित अथवा निर्वहनीय विकास की नीति को अपनाना। मनुष्य में निर्वहनीय विकास एवं उसकी जीवनषैली को अपनाने की समझ तो सम्यक पर्यावरणीय अध्ययन के प्रति जनचेतना को प्रबुद्ध करने से ही उत्पन्न हो सकती है।’’       पर्यावरण अध्ययन के प्रति जन...