डॉ. के. कस्तूरीरंगन : एक युग का अंत, भारत ने खोया अंतरिक्ष और शिक्षा का मसीहा
25 अप्रैल 2025 को भारत ने एक ऐसे महान वैज्ञानिक और दूरदर्शी विचारक को खो दिया, जिसने न केवल भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया, बल्कि शिक्षा नीति को भी भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप नया रूप दिया। डॉ. के. कस्तूरीरंगन का निधन एक युग का अंत है। वे उन बिरले व्यक्तियों में से थे, जिन्होंने विज्ञान और शिक्षा—दोनों क्षेत्रों में भारत को वैश्विक मानचित्र पर गौरवान्वित किया।
जीवन यात्रा और आरंभिक पृष्ठभूमि
डॉ. कस्तूरीरंगन का जन्म 24 अक्टूबर 1940
को केरल में हुआ था। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से भौतिकी में
स्नातकोत्तर और बाद में खगोल भौतिकी में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। विज्ञान के
प्रति उनके रुझान और समर्पण ने उन्हें देश के अग्रणी वैज्ञानिकों की श्रेणी में खड़ा
किया। वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में शामिल
हुए और विज्ञान की सीढ़ियाँ चढ़ते हुए देश के शीर्ष पद तक पहुँचे।
ISRO में अद्वितीय योगदान
1994 से 2003 तक डॉ. कस्तूरीरंगन ISRO के अध्यक्ष रहे। उनके
कार्यकाल में PSLV (Polar Satellite Launch Vehicle), GSLV (Geosynchronous
Satellite Launch Vehicle) जैसे प्रक्षेपण यानों का सफल विकास हुआ।
उन्होंने भारत के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 की
आधारशिला रखी, जिसे उनके बाद के वैज्ञानिकों ने मूर्त रूप
दिया। INSAT और IRS जैसे उपग्रहों की
श्रृंखलाएं उन्हीं की दूरदृष्टि का परिणाम थीं।
उनके नेतृत्व में ISRO ने
आत्मनिर्भरता की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ाए। विज्ञान की जटिलताओं को उन्होंने
राष्ट्रीय विकास से जोड़ा और भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को आम जन के जीवन से
जोड़ने में सफलता प्राप्त की। उनके कार्यों ने यह सिद्ध कर दिया कि विज्ञान केवल
प्रयोगशालाओं का विषय नहीं है, बल्कि राष्ट्र निर्माण का
प्रमुख आधार भी है।
शिक्षा नीति में परिवर्तनकारी भूमिका
डॉ. कस्तूरीरंगन केवल वैज्ञानिक ही नहीं
थे, वे एक प्रखर शिक्षाविद् भी थे। भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षा
नीति 2020 के मसौदे की अध्यक्षता सौंपी। यह कार्य
अत्यंत जटिल था क्योंकि भारत की शिक्षा प्रणाली वर्षों से बदलाव की माँग कर रही
थी। उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और व्यापक विचार-विमर्श, क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिका, मूल्यपरक शिक्षा,
मातृभाषा में शिक्षण, और नवाचार आधारित शिक्षण
पद्धति को प्राथमिकता देते हुए नीति का स्वरूप तैयार किया।
NEP 2020 ने स्कूल शिक्षा
से लेकर उच्च शिक्षा तक की संरचना में क्रांतिकारी परिवर्तन प्रस्तुत किए, और शिक्षा को समावेशी, तकनीक-सक्षम और व्यावसायिक
दृष्टिकोण से युक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना गया।
सार्वजनिक जीवन और सम्मान
डॉ. कस्तूरीरंगन भारत सरकार के योजना
आयोग (अब नीति आयोग) के सदस्य भी रहे। वे राज्यसभा के लिए नामित सदस्य के रूप में
संसद में भी सक्रिय रहे। वे कई विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के कुलपति और
सलाहकार रहे। उनकी वैज्ञानिक दृष्टि का सम्मान करते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री
(1987), पद्मभूषण (1992) और पद्मविभूषण (2000)
जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से नवाजा।
वे भारतीय विज्ञान अकादमी, नेशनल एकेडमी ऑफ
साइंसेज, और अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ जैसे कई वैश्विक संगठनों
के मानद सदस्य थे। उन्हें न केवल भारत में बल्कि विश्वभर में एक आदर्श वैज्ञानिक
नेतृत्वकर्ता के रूप में देखा जाता था।
विरासत और प्रेरणा
डॉ. कस्तूरीरंगन की सबसे बड़ी विरासत
उनकी सोच और दृष्टिकोण है। उन्होंने तकनीक और मानवीय संवेदनाओं के बीच एक संतुलन
स्थापित किया। वे मानते थे कि शिक्षा का उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं
है, बल्कि एक बेहतर नागरिक और समाज का निर्माण करना है।
उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि कैसे
एक व्यक्ति विज्ञान और नीति निर्माण दोनों में उत्कृष्टता प्राप्त कर सकता है। वे
उन आदर्शों में विश्वास रखते थे जहाँ विज्ञान समाज से जुड़ा हो, शिक्षा जीवन से
जुड़ी हो, और नीति जनमानस से जुड़ी हो।
निधन : एक अपूरणीय क्षति
25 अप्रैल 2025 को बेंगलुरु स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम साँस ली। उनके निधन से न
केवल वैज्ञानिक समुदाय में बल्कि शैक्षिक जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई। भारत ने
एक ऐसा पथप्रदर्शक खो दिया, जिसकी भरपाई कर पाना संभव नहीं है।
उनका पार्थिव शरीर रमन रिसर्च
इंस्टीट्यूट में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहाँ देशभर से
वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और नीति निर्माता उन्हें अंतिम विदाई
देने पहुँचे। प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और अनेक शिक्षाविदों
ने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
उपसंहार
डॉ. कस्तूरीरंगन आज भले ही हमारे बीच न
हों, लेकिन उनकी विचारधारा, कार्य, और
प्रेरणाएँ हमारे साथ हैं। वे भारत के उन विरले सपूतों में से हैं जिनके योगदान को
आने वाली पीढ़ियाँ गर्व से याद करेंगी। विज्ञान, शिक्षा और
नीति के इस त्रिवेणी पुरुष को विनम्र श्रद्धांजलि।
"जब तक भारत की अंतरिक्ष उड़ानें और
ज्ञान की यात्राएँ चलती रहेंगी, डॉ. कस्तूरीरंगन का नाम
प्रेरणा बनकर हमारे साथ रहेगा।"
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Ravi Raushan Kumar
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