आज मानवता एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ प्रगति की अंधी दौड़ ने प्रकृति के संतुलन को डगमगा दिया है। वैश्विक तापमान में लगातार वृद्धि, मौसम चक्रों में असामान्यता, समुद्री जलस्तर का बढ़ना और जैवविविधता का ह्रास—ये सभी संकेत करते हैं कि जलवायु परिवर्तन अब भविष्य की आशंका नहीं, वर्तमान की कड़वी सच्चाई बन चुका है। विश्व भर के वैज्ञानिक, नीति-निर्माता और पर्यावरणविद इस संकट के गंभीर परिणामों के प्रति चेतावनी दे रहे हैं। आवश्यकता है कि हम तथ्यों को पहचानें, उनके आधार पर कार्य करें और भविष्य की रक्षा हेतु सामूहिक प्रयास करें।
आज वैश्विक तापमान में औसतन 1.2°C की वृद्धि हो
चुकी है, जैसा कि IPCC की 2023 की रिपोर्ट बताती है। यदि इसी गति से उत्सर्जन चलता रहा तो 2100 तक तापमान में 2.7°C तक की वृद्धि संभव है, जो मानव सभ्यता के लिए अत्यंत घातक हो सकती है। चरम मौसम घटनाओं में तेज़ी
आ चुकी है; संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2020 में पूरी दुनिया में 396 प्राकृतिक आपदाएँ दर्ज की
गईं, जिनमें अधिकांश का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से था।
भारत में ही 2023 के दौरान बाढ़, चक्रवात
और हीटवेव जैसी आपदाओं से तीन करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए।
समुद्री जलस्तर भी चिंताजनक दर से बढ़
रहा है। NASA के अनुसार, 1993 से 2023 के
बीच समुद्र का स्तर औसतन 9 सेंटीमीटर बढ़ चुका है। यदि
वैश्विक तापमान को नियंत्रित नहीं किया गया, तो 2100 तक समुद्र स्तर में 0.3 से 1 मीटर
तक की वृद्धि संभव है, जिससे करीब 68 करोड़
लोग विस्थापन के शिकार हो सकते हैं। इसके साथ ही, कृषि पर भी
गहरा संकट मंडरा रहा है। FAO की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण 2050 तक वैश्विक कृषि
उत्पादन में 10-25% तक की गिरावट आ सकती है। भारत में 2023
में असम, बिहार और ओडिशा जैसे राज्यों में
बाढ़ और सूखे के कारण धान और गेहूं उत्पादन में लगभग 30% तक
की कमी आई है।
स्वास्थ्य क्षेत्र भी जलवायु संकट की
चपेट में है। WHO के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से प्रतिवर्ष 2.5
लाख अतिरिक्त मौतें (हीट स्ट्रोक, मलेरिया,
कुपोषण आदि से) होने की आशंका है। वर्ष 2023 में
भारत में हीटवेव के चलते 3500 से अधिक मौतें दर्ज की गईं।
वहीं, जैवविविधता का पतन और प्रजातियों के विलुप्त होने की
दर भी सामान्य से 1000 गुना अधिक हो चुकी है। उदाहरणस्वरूप,
ऑस्ट्रेलिया की 2020 की जंगल की आग में लगभग 30
करोड़ जीव-जंतुओं की मृत्यु हो गई थी।
जल संकट भी अब तेजी से विकराल होता जा
रहा है। UN-Water के अनुसार, 2025 तक दुनिया की आधी से अधिक आबादी जल
संकट वाले क्षेत्रों में रहने लगेगी। भारत के भी 21 प्रमुख
शहरों जैसे दिल्ली, बेंगलुरु और हैदराबाद के 2030 तक भूजल समाप्त हो जाने की आशंका है। इसके अतिरिक्त, जलवायु परिवर्तन सामाजिक-आर्थिक असमानता को और अधिक बढ़ा रहा है। गरीब और
विकासशील देश सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं, जबकि उनका
उत्सर्जन योगदान न्यूनतम है। भारत में भी हीटवेव और प्राकृतिक आपदाओं का सबसे अधिक
दुष्प्रभाव निम्न आय वर्गों पर पड़ा है।
कुछ वैश्विक घटनाएँ इस संकट की भयावहता
को और स्पष्ट करती हैं। वर्ष 2021 में जर्मनी और बेल्जियम में आई बाढ़ ने 200 से अधिक लोगों की जान ली। 2020 में कैलिफोर्निया के
जंगलों में 42 लाख एकड़ क्षेत्र आग की भेंट चढ़ गया। 2022
में पाकिस्तान में आई भीषण बाढ़ ने 3 करोड़ से
अधिक लोगों को प्रभावित किया और 1700 से अधिक मौतें हुईं।
भारत के असम और बिहार में 2023 की बाढ़ से भी 1.5 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हुए।
इस संकट से निपटने हेतु वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास जारी हैं। पेरिस समझौता (2015) के अंतर्गत अधिकांश देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C के भीतर सीमित रखने का लक्ष्य रखा है। COP28 सम्मेलन (2023) में 100 से अधिक देशों ने 2050 तक कार्बन तटस्थता प्राप्त करने का संकल्प लिया। साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश हो रहा है—सिर्फ 2022 में विश्व भर में $500 बिलियन का निवेश दर्ज हुआ। भारत भी राष्ट्रीय हरित ऊर्जा मिशन के तहत 2030 तक अपनी 50% बिजली उत्पादन क्षमता नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त करने का लक्ष्य लेकर चल रहा है। इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रसार और स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रमों से भी जलवायु अनुकूल प्रयासों को बल मिल रहा है।
व्यक्तिगत स्तर पर भी हम इस संघर्ष में
महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। ऊर्जा की बचत करना, सतत यात्रा के
साधनों का उपयोग करना, स्थानीय और मौसमी खाद्य पदार्थों को प्राथमिकता
देना, पुनर्चक्रण और पुनः उपयोग की आदत डालना, तथा पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूकता फैलाना—ये सभी कदम आवश्यक हैं।
निष्कर्षतः, जलवायु परिवर्तन
कोई दूर की संभावना नहीं, बल्कि आज का जीवंत संकट है। आँकड़े
स्पष्ट रूप से चेतावनी दे रहे हैं कि यदि हमने शीघ्र और ठोस कदम नहीं उठाए,
तो भविष्य में इसकी कीमत असहनीय होगी। हमें अपने जीवन के हर क्षेत्र
में पर्यावरण के अनुकूल परिवर्तन लाना होगा। हर छोटा प्रयास—चाहे वह एक पेड़ लगाना
हो या पानी की एक बूँद बचाना—महत्वपूर्ण है। पृथ्वी हमारी जिम्मेदारी है, और इस जिम्मेदारी का निर्वहन ही मानवता के भविष्य को सुनिश्चित करेगा।
"अब भी वक्त है—चलो धरती को बचाएँ!"
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