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किताबों की दुनिया में बच्चों का सफर: स्क्रीन से दूर, सपनों के पास



आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन, टैबलेट और अन्य गैजेट्स बच्चों के जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनते जा रहे हैं। कहीं भी नज़र डालिए — छोटे-छोटे बच्चे भी घंटों मोबाइल स्क्रीन में डूबे हुए मिलते हैं। यह दृश्य सामान्य भले लगने लगा हो, पर इसके पीछे एक गहरी चिंता छिपी है। बचपन, जो कल्पनाओं, कहानियों और जिज्ञासाओं का समय होना चाहिए, वह अब छोटे-छोटे स्क्रीन तक सीमित होता जा रहा है। ऐसे समय में बच्चों में किताब पढ़ने की आदत डालना केवल एक शौक नहीं, बल्कि एक ज़रूरी संस्कार बन चुका है। यह न केवल उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि उनके चरित्र निर्माण और जीवन के दीर्घकालिक विकास के लिए भी अनिवार्य है।

मोबाइल स्क्रीन का बढ़ता प्रभाव

मोबाइल फोन ने बच्चों के मनोरंजन, शिक्षा और सामाजिक संपर्क के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। आज एक बटन दबाते ही दुनिया भर की जानकारी सामने आ जाती है। ऑनलाइन गेम्स, यूट्यूब विडियोज़, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बच्चों को घंटों तक अपने साथ बाँध कर रखते हैं। प्रारंभ में यह सहज मनोरंजन प्रतीत होता है, परंतु धीरे-धीरे यह लत बन जाती है। इससे बच्चों में कई समस्याएँ पनपने लगती हैं, जैसे—

  • आंखों पर प्रभाव: लंबे समय तक स्क्रीन देखने से दृष्टिदोष बढ़ने लगा है।
  • मोटापा और शारीरिक निष्क्रियता: खेलने-कूदने के बजाय स्क्रीन देखने से शारीरिक गतिविधियाँ कम हो जाती हैं।
  • मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ: चिंता, चिड़चिड़ापन, ध्यान भटकाव और अवसाद जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं।
  • सामाजिक कौशल में कमी: बच्चों के बातचीत करने और रिश्ते बनाने की क्षमता कमजोर होती जा रही है।
  • कल्पनाशक्ति का ह्रास: वीडियो सामग्री में तैयार दृश्य और ध्वनि बच्चों की कल्पना और सोचने की स्वतंत्रता को सीमित कर देती है।

स्पष्ट है कि बच्चों का अत्यधिक मोबाइल उपयोग उनकी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक क्षमताओं पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। ऐसे में, इसका संतुलन आवश्यक है — और इसका सबसे सुंदर विकल्प है किताबों की ओर लौटना।

किताबें: बच्चों के विकास का आधार

किताबें केवल शब्दों का संग्रह नहीं होतीं, वे विचारों, भावनाओं, कल्पनाओं और ज्ञान का खजाना होती हैं। जब बच्चा किताब पढ़ता है, तो वह केवल जानकारी ही नहीं प्राप्त करता, बल्कि सोचता है, कल्पना करता है, प्रश्न करता है और नए संसारों की खोज करता है। किताबें बच्चों में निम्न क्षमताओं का विकास करती हैं—

  • भाषा और अभिव्यक्ति कौशल: पढ़ने से बच्चों की शब्दावली, व्याकरण, लेखन और बोलने की क्षमता में सुधार होता है।
  • ध्यान और धैर्य: किताब पढ़ने में निरंतरता और एकाग्रता चाहिए, जो मोबाइल के सतही उपभोग से नहीं आती।
  • सृजनात्मकता और कल्पना: किताबें बच्चों की कल्पनाशक्ति को उड़ान देती हैं, जिससे वे नए विचारों और समाधानों के बारे में सोच पाते हैं।
  • मूल्य शिक्षा और संवेदनशीलता: साहित्य और कहानियाँ बच्चों को नैतिक मूल्यों, करुणा और सहानुभूति का भाव सिखाती हैं।
  • आत्म-अनुशासन: पढ़ने की आदत से बच्चों में स्वयं को नियंत्रित करने और समय का सदुपयोग करने की क्षमता बढ़ती है।

कह सकते हैं कि किताबें बच्चों के सर्वांगीण विकास का आधार बनती हैं — जो भविष्य में उन्हें एक संवेदनशील, सशक्त और जिम्मेदार नागरिक बनाती हैं।

किताब पढ़ने की आदत डालना क्यों आवश्यक है?

1. डिजिटल युग में संतुलन जरूरी है: बच्चों को तकनीक से अलग नहीं किया जा सकता, लेकिन उसे संतुलित और उद्देश्यपूर्ण तरीके से उपयोग करना सिखाया जा सकता है। किताबें इस संतुलन का माध्यम बन सकती हैं।

2. आत्मनिर्भर सोच का विकास: स्क्रीन पर प्रस्तुत सामग्री में बच्चा केवल उपभोक्ता बनता है, जबकि किताब पढ़ते समय वह सक्रियता से सोचता, समझता और कल्पना करता है।

3. जीवनभर की आदत का निर्माण: जो बच्चे बचपन में पढ़ने की आदत डाल लेते हैं, वे जीवनभर सीखने के प्रति जिज्ञासु बने रहते हैं।

4. स्वस्थ मनोरंजन का विकल्प: किताबें मनोरंजन का एक स्वस्थ और रचनात्मक साधन हैं, जो बच्चों को बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के आनंद देती हैं।

कैसे डालें किताब पढ़ने की आदत?

1. परिवार में पढ़ने का वातावरण बनाएं: बच्चे बड़ों की नकल करते हैं। जब माता-पिता और अन्य बड़े नियमित रूप से किताबें पढ़ते हैं, तो बच्चे भी उन्हें देखकर इस आदत को अपनाते हैं।

2. रुचि के अनुसार पुस्तकें उपलब्ध कराएँ: बच्चों की रुचि समझें और उसी अनुरूप कहानियाँ, चित्रकथाएँ, कविता संग्रह या विज्ञान कथा जैसी किताबें दें।

3. पढ़ने का समय निर्धारित करें: दिन का एक निश्चित समय (जैसे सोने से पहले) केवल पढ़ने के लिए रखें। यह आदत धीरे-धीरे स्थायी बन सकती है।

4. पुस्तकालय भ्रमण: बच्चों को पुस्तकालय लेकर जाएं, जहाँ वे विभिन्न विषयों और प्रकार की किताबों से परिचित हो सकें।

5. कहानियाँ सुनाना और साझा करना: बच्चों के साथ कहानियाँ पढ़ें और उनके पात्रों, घटनाओं पर चर्चा करें। इससे उनका ध्यान और रुचि दोनों बढ़ते हैं।

6. मोबाइल समय को नियंत्रित करें: स्क्रीन टाइम के लिए स्पष्ट और सीमित नियम बनाएं और बच्चों को भी इसके महत्त्व को समझाएं।

चुनौतियाँ:

  • मोबाइल की लत छोड़वाना कठिन हो सकता है।
  • प्रारंभ में बच्चे किताबों में रुचि नहीं दिखा सकते।
  • समय की कमी के कारण माता-पिता स्वयं बच्चों के साथ पढ़ने का समय नहीं निकाल पाते।

समाधान:

  • धैर्य रखें, पढ़ने को एक खेल और आनंदमय अनुभव बनाएं।
  • छोटे-छोटे लक्ष्यों से शुरुआत करें, जैसे प्रतिदिन 10 मिनट पढ़ना।
  • किताबों को मजेदार तरीके से प्रस्तुत करें, जैसे चित्रों, संवादों और प्रश्नों के माध्यम से।
  • बच्चों के पढ़ने की छोटी उपलब्धियों को सराहें।

निष्कर्ष

डिजिटल युग में बच्चों को मोबाइल की दुनिया से बचाना शायद संभव न हो, लेकिन उन्हें किताबों की ओर आकर्षित करना अवश्य संभव है। किताबें न केवल बच्चों का ज्ञान बढ़ाती हैं, बल्कि उन्हें एक बेहतर सोचने वाला, समझने वाला और संवेदनशील इंसान बनाती हैं। पढ़ने की आदत जीवनभर साथ रहने वाला एक उपहार है, जो बच्चे को हर परिस्थिति में नया रास्ता दिखाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम बच्चों को यह उपहार दें-एक ऐसा उपहार जो मोबाइल की चमचमाती स्क्रीन से कहीं ज्यादा मूल्यवान है।

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(C) Ravi Raushan Kumar

 

 

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