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प्राथमिक स्तर पर पठन कौशल विकसित करने में शिक्षक की भूमिका


पठन कौशल किसी भी बच्चे की भाषा, सोच, कल्पना और संप्रेषण क्षमता के विकास की नींव है। यह केवल शब्दों को पहचानने तक सीमित नहीं है, बल्कि पढ़े हुए को समझने, उस पर विचार करने और उसे दैनिक जीवन से जोड़ने की प्रक्रिया है। प्राथमिक कक्षाओं में जब बच्चा भाषा सीख रहा होता है, तब शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। एक संवेदनशील और सक्रिय शिक्षक पठन को केवल पाठ्यक्रम की मांग न मानकर बच्चों के विकास की दिशा में एक सृजनात्मक अवसर बना सकता है।

1. पठन के अनुकूल वातावरण का निर्माण

शिक्षक को चाहिए कि वह कक्षा में पढ़ने के लिए प्रेरक वातावरण बनाए। एक "पठन कोना" जिसमें चित्र-पुस्तकें, कविता-पोस्टर, शब्द कार्ड आदि हों, बच्चों को सहज रूप से पुस्तकों की ओर आकृष्ट करता है। कक्षा की दीवारें भी पठन को प्रोत्साहित कर सकती हैं – जैसे ‘आज का शब्द’, ‘मुझे यह कहानी पसंद आई’ जैसे कोने।

2. रुचिकर और स्तरानुकूल सामग्री का चयन

पढ़ने की आदत तब बनती है जब सामग्री बच्चे की समझ और अनुभव से मेल खाती हो। स्थानीय परिवेश, लोककथाओं, जानवरों, दैनिक जीवन या बच्चों की कल्पना से जुड़ी कहानियाँ उन्हें अधिक आकर्षित करती हैं। शिक्षक को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के पठन स्तर के अनुसार सामग्री का चयन हो, जिससे वे न तो ऊबें और न ही हताश हों।

3. मॉडल पठन और अभिव्यक्ति

शिक्षक स्वयं भावपूर्ण और स्पष्ट ढंग से पढ़कर बच्चों को पठन की सही लय, उच्चारण और अर्थ ग्रहण की प्रक्रिया सिखा सकता है। जब शिक्षक कहानी में अभिनय करता है, पात्रों की आवाजें बदलता है, तो बच्चे न केवल सुनते हैं, बल्कि उसमें डूब जाते हैं।

4. गतिविधि आधारित पठन अभ्यास

पठन को बोझिल न बनाकर खेल और गतिविधियों के रूप में प्रस्तुत करना बच्चों के लिए अधिक प्रभावशाली होता है। जैसे—

·         शब्द कार्ड से मिलान,

·         चित्र देखकर वाक्य बनाना,

·         भूमिका-नाटक के रूप में कहानी प्रस्तुत करना,

·         छोटे-छोटे समूहों में पढ़ना और आपस में साझा करना

इन गतिविधियों से न केवल पठन कौशल बढ़ता है, बल्कि बच्चों में आत्मविश्वास भी आता है।

5. पढ़ने के बाद की चर्चा और लेखन

कहानी सुनने या पढ़ने के बाद बच्चों से प्रश्न पूछना, चित्र बनवाना, कहानी का अंत बदलवाना जैसी प्रक्रियाएँ पठन को गहराई देती हैं। इससे शिक्षक को यह भी समझ आता है कि बच्चा कितना समझ पाया।

6. पुनरावृत्ति और अभ्यास के अवसर

हर बच्चा अपनी गति से सीखता है। नियमित अभ्यास, बार-बार दोहराव, सरल गीतों और लयबद्ध कविताओं के माध्यम से बच्चों में पढ़ने का अभ्यास कराया जा सकता है। कमजोर पाठकों को अलग से समय देकर सहारा देना भी आवश्यक है।

7. परिवार और समुदाय की भागीदारी

पठन केवल कक्षा तक सीमित न रहे। शिक्षक अभिभावकों को प्रोत्साहित करे कि वे बच्चों को रोज़ कहानी सुनाएँ, उन्हें चित्र-पुस्तकों से परिचित कराएँ। स्थानीय कहानियों को साझा करना बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़ता है और पठन को आनंददायक बनाता है।

8. प्रगति का मूल्यांकन और प्रोत्साहन

पठन कौशल के विकास में बच्चों की छोटी-छोटी सफलताओं को पहचानना और उनकी सराहना करना बहुत जरूरी है। इससे उनमें पठन के प्रति रुचि बनी रहती है और वे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

निष्कर्ष

पठन कौशल का विकास केवल एक शैक्षणिक लक्ष्य नहीं है, बल्कि यह बच्चे के समग्र विकास की आधारशिला है। एक सजग, संवेदनशील और रचनात्मक शिक्षक ही वह कड़ी है जो बच्चों को पढ़ने से जोड़ता है, उन्हें सोचने, समझने और अभिव्यक्त करने का अवसर देता है। जब बच्चे पढ़ना पसंद करने लगते हैं, तब वे सीखने के हर दरवाज़े की चाबी पा लेते हैं।

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Ravi Raushan Kumar

 

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