प्राथमिक कक्षा के बच्चों को कविता पढ़ाने की प्रभावी विधियाँ

प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य बच्चों में न केवल बुनियादी भाषाई दक्षता विकसित करना होता है, बल्कि उनके भीतर कल्पनाशक्ति, संवेदनशीलता और अभिव्यक्ति की क्षमता को भी जगाना होता है। इस दिशा में कविता एक अत्यंत प्रभावशाली शैक्षिक माध्यम है। कविता केवल शब्दों का समुच्चय नहीं होती, वह बच्चों के मन में भावनाओं, ध्वनियों और कल्पना की एक नई दुनिया खोलती है। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि कविता को केवल रटवाने का नहीं, बल्कि अनुभव कराने का प्रयास किया जाए।

            कविता के माध्यम से छोटे बच्चे भाषा के लयात्मक रूप से परिचित होते हैं। वे शब्दों की ध्वनियों, तुकबंदियों, भावों और विचारों को सहजता से ग्रहण करते हैं। यह उनके श्रवण कौशल, स्मृति, बोलने की क्षमता, और संवेदनात्मक विकास को बढ़ावा देता है। यदि शिक्षक कविता को जीवन्त, रोचक और संदर्भानुकूल बना दें, तो यह कक्षा के सबसे प्रभावशाली अनुभवों में बदल सकती है।

            कविता पढ़ाने से पहले कक्षा का वातावरण उस कविता के भावों से मेल खाना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि कविता ‘बारिश’ पर है, तो शिक्षक बच्चों को आंखें बंद कराकर बारिश की आवाज़ सुनाएँ, या खिड़की से बाहर की रिमझिम को दिखाएँ। यदि कविता ‘तितली’ पर है, तो रंग-बिरंगे कागज़ से बनी तितलियाँ बच्चों को दिखाई जाएँ। इस प्रकार का वातावरण बच्चों को भावनात्मक रूप से कविता से जोड़ता है।

 
बिहार बोर्ड की कक्षा 4 की हिंदी की पाठ्यपुस्तक 'कोंपल' में प्रथम अध्याय में दी गयी कविता 'याद तुम्हारी आती है' को जब मैंने बच्चों के बीच प्रस्तुत किया तो इस कविता में आये विभिन्न शब्द यथा-चिड़ियाँ, कलियाँ, खुशबू, लहरें, बूंदें, बिजली, हरियाली इत्यादि को बच्चे महसूस कर सकें इसके लिए अभिनय और हाव-भाव के साथ प्रस्तुति दिया। इसके अतिरिक्त इस कविता को गाकर और ताल में पढने का भी अभ्यास बच्चों के साथ किया गया। सीखने की गति को बढ़ने के उद्देश्य से इस कविता को कई बार बच्चों के साथ दुहराया गया। बच्चे पूरी कविता के शब्दों को आनंदपूर्वक अनुभव कर रहे थे। लय के साथ पढ़ाने पर बच्चों ने इस कविता के साथ जुड़ाव महसूस किया। इन्हीं व्यावहारिक अनुभवों के आधार पर कुछ शिक्षण विधियों  को मैं यहाँ साझा कर रहा हूँ:- 

अभिनय और हावभाव के साथ प्रस्तुति

कविता को पढ़ना एक अभिनय की तरह होना चाहिए। शिक्षक को अपने चेहरे के भाव, आवाज़ की लय, और शारीरिक गतिविधियों के साथ कविता सुनानी चाहिए। उदाहरण के लिए, “एक चिड़िया, अनेक चिड़ियाँ” कविता को पढ़ते समय हाथों को पंख की तरह फैलाना, आँखों को चंचल बनाना, बच्चों को ध्यान से सुनने और कल्पना करने को प्रेरित करता है। जब शिक्षक कविता में जीते हैं, तो बच्चे भी उसमें डूब जाते हैं।

कविता को गाकर या ताल में पढ़ाना

बच्चों को लय और ताल बहुत प्रिय होती है। कविता को धुन में गाकर या ताल देकर प्रस्तुत करना, उन्हें और भी आकर्षित करता है। कुछ कविता की पंक्तियाँ ऐसी होती हैं जिनमें स्वर-संगीत स्वयं निहित होता है। यदि कविता में नृत्य या ताल की गुंजाइश हो, तो शिक्षक बच्चों को थाप देने या तालियाँ बजाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।

दोहराव और अभ्यास

प्राथमिक कक्षा के बच्चे दोहराव के माध्यम से सीखते हैं। इसलिए कविता को एक बार पढ़कर आगे बढ़ने की बजाय उसे कई बार पंक्ति-दर-पंक्ति दोहराएं। पहले शिक्षक बोलें, फिर बच्चे। फिर समूह में पढ़वाएँ और अंत में किसी एक या दो बच्चों से पूरी कविता सुनवाएँ। इससे न केवल कविता याद होती है, बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ता है।

चित्रकला और क्रियात्मक गतिविधियाँ

कविता की कल्पना को दृश्य रूप में लाने के लिए चित्र बनवाना, रंग भरवाना, या कागज से विभिन वस्तुओं का निर्माण करने जैसी गतिविधियाँ कराना अत्यंत उपयोगी होता है। यह रचनात्मक गतिविधियाँ बच्चों को कविता से जोड़े रखती हैं। जैसे, “पानी की बूंद” कविता के बाद बच्चे कागज़ पर नीली बूँदें बनाएं और अपने अनुभव साझा करें – “मुझे बारिश में नहाना अच्छा लगता है।”

प्रश्न पूछना और बातचीत कराना

बच्चों से कविता पढ़ने के बाद सरल प्रश्न पूछना जरूरी है, जैसे:

  • कविता में चिड़िया क्या कर रही थी?
  • बूंदें कैसे गिड़ रहीं थीं?
  • मैदानों में, वन-बागों में क्या लहरा रही थी?
  • तुम्हें कविता में सबसे अच्छा क्या लगा?

बच्चे जब कविता से संबंधित अपने विचार बताते हैं, तो उनकी समझ, श्रवण क्षमता, और भाषा प्रयोग का अभ्यास होता है।

कविता का नाट्य रूपांतरण (ड्रामा)

बच्चों को कविता के पात्रों की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करें। वे चिड़िया, तितली, बादल या सूरज बनकर कविता का अभिनय करें। इससे कविता का भावनात्मक प्रभाव और अधिक गहरा होता है और बच्चे कविता को महसूस करना सीखते हैं।

रचनात्मकता को प्रोत्साहित करना

बच्चों से यह भी पूछें— "अगर तुम तितली होते तो कहाँ जाते?" या "बादल बनते तो क्या करते?"
इस तरह के प्रश्न बच्चों को स्वयं सोचने और अपने विचारों को कविता जैसी भाषा में व्यक्त करने की प्रेरणा देते हैं। वे छोटी-छोटी पंक्तियाँ खुद बनाना शुरू करते हैं, जो उनकी कवितात्मक अभिव्यक्ति का आरंभ होती है।

क्या करें और क्या न करें (Do’s and Don’ts)

 क्या करें

क्या न करें

सरल भाषा और भावों में कविता समझाएँ

कठिन शब्दों का बोझ न डालें

अभिनय और हावभाव के साथ प्रस्तुत करें

बिना रुचि के सपाट ढंग से न पढ़ाएँ

समूह और व्यक्तिगत दोहराव कराएँ

बच्चों को चुपचाप सुनने को बाध्य न करें

रचनात्मक गतिविधियाँ जोड़ें

केवल पाठ्यपुस्तक तक सीमित न रहें

बच्चों की प्रतिक्रियाओं को सम्मान दें

उत्तर गलत होने पर हँसी उड़ाना न करें

अधिगम संकेतक :

·        क्या बच्चे कविता की लय और शब्दों को याद रख पा रहे हैं?

·        क्या वे कविता को हावभाव के साथ प्रस्तुत कर पा रहे हैं?

·        क्या वे कविता से जुड़े चित्र या विचार प्रस्तुत कर पा रहे हैं?

बच्चों के विकास के संकेतक:

  • कविता सुनते समय ध्यानपूर्वक देखना और प्रतिक्रिया देना।
  • सरल प्रश्नों के उत्तर देना और अपने अनुभव साझा करना।
  • अपनी कल्पनाओं को रचनात्मक ढंग से व्यक्त करना।

निष्कर्ष

प्राथमिक कक्षा में कविता पढ़ाना केवल पाठ्यक्रम का एक हिस्सा नहीं, बल्कि भाषा और भावों के विकास की एक सशक्त प्रक्रिया है। यदि शिक्षक कविता को जीते हैं, तो बच्चे भी कविता में जीने लगते हैं। यह प्रक्रिया केवल ज्ञान नहीं, आनंद, अनुभव और अभिव्यक्ति का संगम बन जाती है। एक शिक्षक की सृजनात्मकता ही कविता को कक्षा की दीवारों से निकालकर बच्चों के मन में उतार सकती है।

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रवि रौशन कुमार, शिक्षक (1-5), राजकीय मध्य विद्यालय माधोपट्टी, दरभंगा (बिहार) 

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