प्रेस या मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है। यह वह ताकत है, जो सत्ता के अन्य तीन स्तम्भों-कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका-पर निगरानी रखती है, उनके कामकाज की जानकारी जनता तक पहुँचाती है, और नागरिकों को अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाती है। प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ है कि पत्रकार और मीडिया संस्थान बिना किसी सरकारी दबाव, सेंसरशिप या धमकी के अपने विचार और समाचार प्रस्तुत कर सकें। आज, जब विश्व भर में सूचना का प्रवाह तीव्र हुआ है, तब प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
हाल के वर्षों में, प्रेस की स्वतंत्रता के संदर्भ में विश्व का परिदृश्य चिंताजनक रहा है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (RSF) जैसी संस्थाएँ हर वर्ष प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी करती हैं, जो यह दिखाता है कि किस देश में पत्रकार किस हद तक स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं। 2024 के रिपोर्ट्स के अनुसार, केवल लगभग 30% देशों में मीडिया अपेक्षाकृत स्वतंत्र और सुरक्षित है। नॉर्वे, डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड और आयरलैंड जैसे स्कैंडिनेवियाई और यूरोपीय देश लगातार शीर्ष स्थानों पर रहते हैं, जहाँ प्रेस को स्वतंत्र और सुरक्षित माना जाता है। यहाँ सरकारें पत्रकारों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती हैं, पत्रकारों के काम में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं किया जाता, और सूचना तक पहुँच आसान होती है। इसके विपरीत, म्यांमार, ईरान, चीन, उत्तर कोरिया और अफगानिस्तान जैसे देशों में प्रेस की स्थिति अत्यंत दयनीय है। सरकारी सेंसरशिप, इंटरनेट पर नियंत्रण, पत्रकारों की गिरफ्तारी, धमकी और यहाँ तक कि हत्या तक की घटनाएँ आम हैं। इन देशों में स्वतंत्र पत्रकारिता लगभग असंभव हो चुकी है।
पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों पर हमले, फर्जी खबरों (fake news) के आरोप लगाकर गिरफ्तारियाँ, और मीडिया संस्थानों को आर्थिक रूप से कमजोर करने की कोशिशें दुनियाभर में बढ़ी हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध और गाज़ा पट्टी के संघर्ष जैसे वैश्विक संकटों ने भी युद्ध रिपोर्टिंग को खतरनाक बना दिया है। युद्धग्रस्त क्षेत्रों में पत्रकारों की हत्या और अपहरण की घटनाएँ लगातार सामने आ रही हैं।
अगर हम वैश्विक स्तर पर प्रेस की स्वतंत्रता के प्रमुख खतरों की बात करें, तो सबसे पहले सरकारी नियंत्रण और सेंसरशिप का उल्लेख आवश्यक है। कई देशों में सरकारें मीडिया पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण रखती हैं, असहमत स्वरों को दबा देती हैं और केवल सरकारी प्रचार को प्राथमिकता देती हैं। दूसरा बड़ा खतरा डिजिटल सेंसरशिप है, जहाँ सोशल मीडिया और इंटरनेट पर निगरानी, कंटेंट हटवाना, या वेबसाइट्स बंद करना एक नया खतरा बनकर उभरा है। तीसरा खतरा हिंसा और धमकी है, जिसमें पत्रकारों को धमकाना, उन पर हमले करवाना या उनकी जासूसी करना शामिल है। चौथा बड़ा खतरा कानूनी हथकंडे हैं, जैसे पत्रकारों और मीडिया हाउस पर मानहानि, देशद्रोह, राजद्रोह जैसे मामलों में मुकदमे ठोकना, ताकि वे दबाव में आकर चुप हो जाएँ।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जहाँ संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार नागरिकों को दिया गया है। हालाँकि, इसमें "यथोचित प्रतिबंधों" का प्रावधान भी है, जो अक्सर प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभाव डालता है। रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के 2024 प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 161वें स्थान पर रहा, जो चिंता का विषय है। भारत में मुख्य चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहले राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ता है। कई बार सरकारों द्वारा असहमत मीडिया संस्थानों को आर्थिक रूप से कमजोर किया जाता है, या उन पर सरकारी एजेंसियों (जैसे ED, CBI, IT विभाग) के छापे पड़ते हैं। दूसरा बड़ा खतरा धमकी और हिंसा है, विशेषकर छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में पत्रकारों को माफिया, दबंगों या राजनीतिक शक्तियों द्वारा धमकियाँ मिलती हैं। कई पत्रकारों की हत्या के मामले भी सामने आए हैं, जिनमें पत्रकारिता के कारण जान गई। तीसरा खतरा डिजिटल मंचों पर है, जहाँ इंटरनेट शटडाउन, डिजिटल निगरानी, और सोशल मीडिया पर कंटेंट हटाने का दबाव आज भारतीय पत्रकारों की नई चुनौती है। चौथा खतरा फर्जी खबरों और ‘देशद्रोह’ के आरोप हैं, जहाँ कई बार सत्ताधारी पक्ष विरोधी रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों पर ‘देशद्रोह’, ‘फर्जी खबर’ फैलाने, या ‘सांप्रदायिकता’ बढ़ाने के आरोप लगा देता है। इससे स्वतंत्र और निर्भीक रिपोर्टिंग खतरे में पड़ती है।
फिर भी भारत में कई स्वतंत्र मीडिया संस्थान, ऑनलाइन पोर्टल, और स्वतंत्र पत्रकार अब भी जोखिम उठाकर साहसिक रिपोर्टिंग करते हैं। जाँच-पड़ताल पर आधारित रिपोर्टिंग (investigative journalism) के कई उल्लेखनीय उदाहरण हाल के वर्षों में सामने आए हैं। सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय भी कई बार प्रेस स्वतंत्रता के पक्ष में अहम फैसले देते रहे हैं। प्रेस की स्वतंत्रता इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह लोकतंत्र को सशक्त बनाती है, सत्ता को जवाबदेह बनाती है, भ्रष्टाचार को उजागर करती है, और जनता को जानकारी प्रदान करती है। यह सामाजिक मुद्दों को आवाज़ देती है, जैसे हाशिए के समुदायों, गरीबों, दलितों, महिलाओं, अल्पसंख्यकों की समस्याएँ। इसके साथ ही मीडिया नागरिकों को सूचना प्रदान कर उनकी राय और दृष्टिकोण के निर्माण में सहायक होता है।
प्रेस स्वतंत्रता के संरक्षण के लिए कुछ ठोस उपाय ज़रूरी हैं। सबसे पहले कानूनी और संवैधानिक संरक्षण को मज़बूत करना चाहिए, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता को स्पष्ट रूप से संवैधानिक दर्जा दिया जाए और "यथोचित प्रतिबंध" की व्याख्या साफ की जाए। पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष कानून, फास्ट-ट्रैक अदालतें, और सुरक्षा योजनाएँ लागू करनी चाहिए। डिजिटल स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इंटरनेट शटडाउन को केवल अत्यंत आवश्यक परिस्थितियों में ही अनुमति मिलनी चाहिए, और डिजिटल मंचों पर स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए। मीडिया संस्थानों की आर्थिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए विज्ञापन वितरण में निष्पक्षता होनी चाहिए। सबसे अहम बात, नागरिकों को स्वतंत्र और जिम्मेदार मीडिया की महत्ता समझनी चाहिए और clickbait या फर्जी खबरों को बढ़ावा न देकर गुणवत्ता आधारित पत्रकारिता को समर्थन देना चाहिए।
निष्कर्षतः, विश्व भर में प्रेस की स्वतंत्रता आज कई प्रकार के खतरों से घिरी है—राजनीतिक दबाव, हिंसा, सेंसरशिप, और डिजिटल खतरों से। भारत भी इस वैश्विक प्रवृत्ति से अछूता नहीं है। अगर हम सचमुच एक मजबूत लोकतंत्र बनाना चाहते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि पत्रकार सुरक्षित रहें, मीडिया को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए, और नागरिक खुद भी जिम्मेदार उपभोक्ता बनें। एक स्वस्थ समाज के लिए एक स्वतंत्र, जीवंत, और विविधतापूर्ण मीडिया का होना अनिवार्य है। यह केवल पत्रकारों की लड़ाई नहीं है, बल्कि हर जागरूक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह प्रेस की स्वतंत्रता के संरक्षण में अपनी भूमिका निभाए।
Important Links :-
https://unesdoc.unesco.org/ark:/48223/pf0000377231
https://www.ifj.org/media-centre/news/detail/category/press-releases/article/india-press-freedom
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