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अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस

 

In its resolution A/RES/55/201  dated 8 February 2001, the United Nations General Assembly proclaimed 22 May as the International Day for Biological Diversity to increase understanding and awareness of biodiversity issues. This date commemorates the adoption of the text of the Convention on Biological Diversity (CBD) on 22 May 1992. 


अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस:

  • वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembl-UNGA) ने आधिकारिक तौर पर 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस घोषित किया।
  • जैवविविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention on Biological Diversity- UNCBD) 22 मई 1992 को अपनाया गया था।
    • UNCBD जैवविविधता के संरक्षण के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि है।
    • भारत इस संधि का एक पक्षकार है और इसने जैवविविधता अधिनियम, 2002 लागू किया है।
  • जैवविविधता शब्द एक अवधारणा के रूप में पहली बार वर्ष 1985 में वाल्टर जी. रोसेन द्वारा दिया गया, जिसमें पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों और मनुष्यों सहित सभी जीवन रूपों की विविधता शामिल है।


जैव विविधता:

  • जैव विविधता शब्द का प्रयोग पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का वर्णन करने के संदर्भ में किया जाता है। इसका उपयोग विशेष रूप से एक क्षेत्र या पारिस्थितिकी तंत्र में सभी प्रजातियों को संदर्भित करने हेतु किया जा सकता है। जैव विविधता पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है।
  • इसे अक्सर पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की विस्तृत विविधता के संदर्भ में समझा जाता है, लेकिन इसमें प्रत्येक प्रजाति में विद्यमान आनुवंशिक अंतर भी शामिल होता है।

चिंताएँ:

  • वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (World Wide Fund for Nature) द्वारा अपनी प्रमुख लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2020 (Living Planet Report 2020) में इस बात के प्रति चेताया गया है कि वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है।
  • इस रिपोर्ट में 50 वर्षों से भी कम समय में 68 प्रतिशत वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने  की बात  कही गई है जबकि पहले प्रजातियों में इतनी गिरावट नहीं देखी गई।

संरक्षण की आवश्यकता:

  • जैव विविधता  के  संरक्षण से पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता में बढ़ोत्तरी होती  है जहांँ प्रत्येक प्रजाति, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, सभी की महत्त्वपूर्ण  भूमिका होती है।
  • पौधों की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या के होने का अर्थ है, फसलों की अधिक विविधता। अधिक प्रजाति विविधता सभी जीवन रूपों की प्राकृतिक स्थिरता सुनिश्चित करती है।
  • जैव विविधता के संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर  संरक्षण किया जाना चाहिये ताकि खाद्य शृंखलाएँ बनी रहें। खाद्य शृंखला में गड़बड़ी पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकती है।

जैव विविधता अधिनियम, 2002

इस अधिनियम को वर्ष 2002 में अधिनियमित किया गया था, इसका उद्देश्य जैविक संसाधनों का   संरक्षण, इनके धारणीय उपयोग का प्रबंधन और स्थानीय समुदायों के साथ उचित व न्यायसंगत साझाकरण तथा भारत की समृद्ध जैव विविधता को संरक्षित रखकर वर्तमान और भावी पीढ़ियों के कल्याण के लिये इसके लाभ के वितरण की प्रक्रिया को सुनिश्चित करना है।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  • अधिनियम राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण के पूर्व अनुमोदन के बिना निम्नलिखित गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है:
    • किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन (भारत में स्थित अथवा नहीं) द्वारा शोध या व्यावसायिक उपयोग हेतु भारत में उत्पादित किसी भी जैव संसाधन की प्राप्ति ।
    • भारत में पाए जाने वाले या भारत से प्राप्त जैव संसाधन से संबंधित किसी भी प्रकार के शोध परिणामों का स्थानांतरण।
    • भारत से प्राप्त जैव संसाधनों पर किये गए शोध पर आधारित किसी भी आविष्कार पर बौद्धिक संपदा अधिकारों का दावा।
  • अधिनियम ने जैव संसाधनों तक पहुँच को विनियमित करने के लिये एक त्रिस्तरीय संरचना की परिकल्पना की:
    • राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA)।
    • राज्य जैव विविधता बोर्ड (SBB)।
    • जैव विविधता प्रबंधन समितियाँ (BMC) (स्थानीय स्तर पर)।
  • अधिनियम इन प्राधिकरणों हेतु देश के जैव प्राकृतिक संसाधनों से संबंधित किसी भी अनुसंधान परियोजना को निष्पादित करने के लिये विशेष वित्त एवं एक पृथक बजट का प्रावधान करता है।
    • यह जैव संसाधनों के धारणीय उपयोग की निगरानी करेगा तथा वित्तीय निवेश व प्राप्तियों पर नियंत्रण रखेगा तथा पूंजी एवं बिक्री की उचित व्यवस्था करेगा।
  • इस अधिनियम के तहत NBA के परामर्श से केंद्र सरकार निम्नलिखित उपाय करेगी:
    • संकटग्रस्त प्रजातियों के बारे में सूचित करेगी और उनके संग्रहण को प्रतिबंधित या विनियमित करने के साथ ही पुनर्वास को संरक्षित करेगी।
    • जैव संसाधनों की विभिन्न श्रेणियों के लिये कोष के रूप में संस्थानों को नामित करेगी।
  • अधिनियम के तहत सभी अपराधों को संज्ञेय एवं गैर-जमानती रूप में निर्धारित करना।
  • इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण या राज्य जैव विविधता बोर्ड के आदेश अथवा लाभ के बँटवारे के निर्धारण से संबंधित किसी भी शिकायत को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal - NGT) के पास ले जाया जाएगा।

अन्य कानून जिनसे NGT सरोकार रखती है, में शामिल हैं:

  • जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974
  • जल (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977
  • वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980
  • वायु (प्रदूषण रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981
  • पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
  • लोक दायित्त्व  बीमा अधिनियम, 1991

अधिनियम से छूट

  • अधिनियम में उन भारतीय जैव संसाधनों को शामिल नहीं किया गया है जिनका सामान्य वस्तुओं के रूप में व्यापार किया जाता है। 
    • इस प्रकार की छूट केवल तब तक होती है जब तक जैव संसाधनों को वस्तुओं के रूप में उपयोग किया जाता है, किसी अन्य उद्देश्य के लिये नहीं।
  • यह अधिनियम भारतीय जैविक संसाधन एवं संबंधित ज्ञान के पारंपरिक उपयोगों को भी शामिल नहीं करता है तथा जब जैव संसाधनों का उपयोग केंद्र सरकार की अनुमति के साथ भारतीय व विदेशी संस्थानों के मध्य सहयोगी अनुसंधान परियोजनाओं में किया जाता है, तो उन्हें भी शामिल नहीं करता है।
  • विभिन्न प्रकार के काश्तकारों यथा- किसान, पशुपालक एवं मधुमक्खी पालक तथा पारंपरिक उपचारक, उदाहरण के लिये वैद्य और हकीमों को भी अधिनियम से छूट प्रदान की गई है।

राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण

  • भारत में जैव विविधता अधिनियम (2002) को लागू करने के लिये केंद्र सरकार द्वारा वर्ष 2003 में राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (NBA) की स्थापना की गई थी।
  • यह एक वैधानिक निकाय है जो जैव संसाधनों के संरक्षण एवं धारणीय उपयोग के मुद्दे पर भारत सरकार के लिये विनियामक एवं सलाहकार संबंधी कार्य करता है।
  • इसका मुख्यालय चेन्नई, तमिलनाडु में है।

पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (PBR):

  • पीपल्स बायोडायवर्सिटी रजिस्टर (Peoples Biodiversity Register- PBR) के तहत स्थानीय जैव विविधता, पारंपरिक ज्ञान एवं कार्यों के सहभागी अभिलेखन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
    • रजिस्टर में स्थानीय जैव संसाधनों की उपलब्धता एवं ज्ञान, उनके औषधीय या अन्य उपयोग अथवा अन्य व्यापक जानकारियाँ होंगी।
  • इन्हें जैव संसाधनों एवं संबंधित पारंपरिक ज्ञान पर स्थानीय लोगों के अधिकार निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ों के रूप में देखा जाता हैं।

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