आज के युग में कंप्यूटर ज्ञान प्रत्येक छात्र के लिए आवश्यक हो गया है, किंतु अनेक विद्यालयों में कंप्यूटर लैब की अनुपलब्धता एक बड़ी चुनौती है। विशेषकर ग्रामीण या संसाधन-विहीन मध्य विद्यालयों में यह समस्या और गंभीर हो जाती है। ऐसे में शिक्षकों के सामने यह प्रश्न उठता है कि बिना लैब और उपकरणों के कंप्यूटर की शिक्षा कैसे दी जाए। इसका समाधान पाठ्यपुस्तक आधारित शिक्षण और नवाचार से संभव है।
सबसे पहले, शिक्षक को स्वयं कंप्यूटर की मूलभूत अवधारणाओं जैसे कि हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर, इनपुट-आउटपुट डिवाइस, ऑपरेटिंग सिस्टम, टाइपिंग, और इंटरनेट की बुनियादी जानकारी को भली-भांति समझना आवश्यक है। उसके बाद वे पाठ्यपुस्तक की सहायता से इन अवधारणाओं को छात्रों को सरल भाषा और स्थानीय उदाहरणों के माध्यम से समझा सकते हैं। उदाहरण के लिए, CPU को 'दिमाग' और मॉनिटर को 'आंख' के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
चित्रों का उपयोग इस शिक्षण प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बना सकता है। कंप्यूटर की पाठ्यपुस्तकों में छपे चित्रों को ध्यानपूर्वक दिखाकर छात्रों को उनके कार्य और उपयोग समझाना चाहिए। यदि संभव हो तो शिक्षक स्वयं पोस्टर या चार्ट तैयार करके उनमें कंप्यूटर की संरचना, डिवाइस और प्रक्रिया को चित्रात्मक रूप में समझा सकते हैं। यह छात्रों की दृश्य स्मृति को विकसित करता है और बिना वास्तविक कंप्यूटर के भी वे उसकी कल्पना कर पाते हैं।
साथ ही, शिक्षक समूह गतिविधियों और भूमिकाओं के माध्यम से भी कंप्यूटर की प्रक्रियाओं को 'रोल प्ले' के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक छात्र CPU की भूमिका निभाए, दूसरा कीबोर्ड, और तीसरा मॉनिटर की, और फिर इनपुट-प्रोसेस-आउटपुट की प्रक्रिया को अभिनय के माध्यम से समझाया जाए। यह तरीका छात्रों के लिए रोचक और यादगार बन जाता है।
पाठ्यपुस्तक में दिए गए अभ्यास प्रश्नों और कार्यों को कक्षा में ही लिखवाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, छात्रों से कंप्यूटर के उपयोग, प्रकार, लाभ आदि पर लघु अनुच्छेद लिखवाना, या कंप्यूटर शब्दों का अर्थ समझाना। इससे लेखन और विषय की समझ दोनों विकसित होते हैं।
जहाँ मोबाइल या प्रोजेक्टर की सुविधा उपलब्ध हो, वहाँ शिक्षकों द्वारा यूट्यूब पर उपलब्ध शैक्षिक वीडियो या एनिमेशन दिखाकर अवधारणाओं को जीवन्त किया जा सकता है। यदि यह सुविधा नहीं है, तो शिक्षक स्वयं कहानी, उपमा, और दैनिक जीवन के उदाहरणों से ही पढ़ाई को रोचक बना सकते हैं।
सबसे जरूरी बात यह है कि शिक्षक स्वयं आत्मविश्वास के साथ इस विषय को पढ़ाएं और बच्चों को यह समझाएं कि भले ही उनके पास कंप्यूटर नहीं है, लेकिन वे ज्ञान में किसी से पीछे नहीं हैं। जब वे आगे चलकर कंप्यूटर से जुड़ेंगे, तो यह बुनियादी समझ उनके लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होगी।
इस प्रकार, कंप्यूटर लैब की अनुपस्थिति में भी शिक्षकों की रचनात्मकता, समर्पण और पाठ्यपुस्तक का उपयोग करके मध्य विद्यालय के बच्चों को कंप्यूटर विज्ञान का मजबूत आधार दिया जा सकता है। यही शिक्षण का असली उद्देश्य है – सीमित संसाधनों में भी बच्चों को ज्ञान से समृद्ध करना।
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#रवि रौशन कुमार
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