यद्यपि रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शिक्षा के उद्देश्यों की किसी भी स्थान पर पृथक
रूप से चर्चा नहीं की है तथापि उनकी लेखों में शिक्षा के उद्देश्य से सम्बन्धित
उनके विचार प्राप्त होते हैं। टैगोर (Tagore) ने शिक्षा शब्द का अर्थ व्यापक अर्थ में लिया है, उन्होंने अपनी पुस्तक 'Personality' में लिखा है "सर्वोत्तम शिक्षा वही है, जो सम्पूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती
है।" "The highest Education is that which make's in our life
harmony with all existence." सम्पूर्ण दृष्टि से टैगोर का अभिप्राय है संसार की चार और अचर जड़ और चेतन
सजीव ओर निर्जीव सभी वस्तुएँ। इन वस्तुओं से हमारे जीवन का सामंजस्य तभी हो सकता
है जब हमारी समस्त शक्तियाँ पूर्ण रूप से विकसित होकर, उच्चतम बिन्दु पर पहुँच जायें इसी को टैगोर ने पूर्ण मनुष्यत्व (surplus in man) कहा है। शिक्षा का कार्य है, हमें इस स्थिति में पहुँचाना। इस दृष्टिकोण से टैगोर के अनुसार
शिक्षा विकास की प्रक्रिया है। वह मनुष्य का शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, व्यावसायिक, धार्मिक और आध्यात्मिक विकास करती है। अतः टैगोर के विचार में
शिक्षा का रूप अत्यन्त व्यापक है। शिक्षा को व्यापक अर्थ के अन्तर्गत टैगोर ने
शिक्षा के प्राचीन भारतीय आदर्श को ध्यान में रखा है। वह आदर्श है'सा विद्या या विमुक्तये। इस आदर्श के अनुसार शिक्षा मनुष्य को
आध्यात्मिक ज्ञान देकर उसे जीवन एवं मरण से मुक्ति प्रदान करती है। टैगोर ने
शिक्षा के इस प्राचीन आदर्श को भी व्यापक रूप दिया है। उनका कहना है कि शिक्षा न
केवल आवागमन से वरन् आर्थिक, सामाजिक, राजनेतिक और मानसिक दासता से भी मनुष्य को मुक्ति प्रदान करती
है। अतः मनुष्य को शिक्षा द्वारा उस ज्ञान का संग्रहण करना चाहिये जो उसके
पूर्वजों द्वारा संचित किया जा चुका है, यही सच्ची शिक्षा है। स्वयं टेगोर ने लिखा है" सच्ची
शिक्षा संग्रह किये गये लाभप्रद ज्ञान के प्रत्येक अंग के प्रयोग करने में उस अंग
के वास्तविक स्वरूप को जानने में और जीवन में जीवन के लिये सच्चे आश्रय का निर्माण करने में है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार
शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या आवश्यक तत्त्व निम्नलिखित हैं:
1. छात्रों में
संगीत,
अभिनय एवं चित्रकला की योग्यताओं का विकास किया जाना
चाहिये।
2. छात्रों को
भारतीय विचारधारा और भारतीय समाज की पृष्ठभूमि का स्पष्ट ज्ञान प्रदान किया जाना
चाहिये।
3. छात्रों को
उत्तम मानसिक भोजन दिया जाना चाहिये, जिससे उनका
विकास विचारों के पर्यावरण में हो।
4. छात्रों को नगर
की गन्दगी और अनैतिकता से दूर प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रखकर शिक्षा दी जानी
चाहिये।
5. शिक्षा
राष्ट्रीय होनी चाहिये और उसे भारत के अतीत एवं भविष्य का पूर्ण ध्यान रखना
चाहिये।
6. शिक्षा का
समुदाय के जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध होना चाहिये। उसे सजीव और गतिशील होने के लिये
व्यापक दृष्टिकोण रखना चाहिये।
7. शिक्षा का
माध्यम मातृभाषा होना चाहिये क्योंकि विदेशी भाषा द्वारा अनन्त मूल्यों को प्राप्त
नहीं किया जा सकता।
8. शिक्षा का
उद्देश्य होना चाहिये-व्यक्ति में सभी जन्मजात शक्तियों एवं उनके व्यक्तित्व का
सर्वांगीण और सामंजस्यपूर्ण विकास करना।
9. जनसाधारण को
शिक्षा देने के लिये देशी प्राथमिक विद्यालयों को पुनः जीवित किया जाना चाहिये।
10. यथासम्भव
शिक्षा विधि का आधार जीवन, प्रकृति और समाज की वास्तविक
परिस्थितियाँ होनी चाहिये।
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रवि रौशन कुमार
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