नेपाल में संकट

 नेपाल में हाल ही में भड़की हिंसा ने पूरे दक्षिण एशिया का ध्यान आकर्षित किया है। यह हिंसा केवल किसी एक निर्णय या घटना का परिणाम नहीं है, बल्कि राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, सामाजिक असंतोष और नई पीढ़ी की आकांक्षाओं के बीच पैदा हुए गहरे टकराव का विस्फोट है। जिस प्रकार अचानक पूरे देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और हिंसक रूप ले बैठे, वह नेपाल की वर्तमान व्यवस्था में जमीनी स्तर पर व्याप्त असंतोष को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इस आलेख में हम नेपाल की हिंसा के पीछे मौजूद प्रमुख कारणों, उनकी पृष्ठभूमि और संभावित परिणामों का समग्र विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।

सबसे पहला और प्रत्यक्ष कारण रहा सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर लगाया गया प्रतिबंध। नेपाल सरकार ने सितंबर 2025 में यह आदेश जारी किया कि जो सोशल मीडिया कंपनियाँ स्थानीय कानूनों और पंजीकरण प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहीं, उन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाए। इसके अंतर्गत Facebook, X (Twitter), WhatsApp, Instagram और YouTube जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म बंद कर दिए गए। यह निर्णय तकनीकी और प्रशासनिक दृष्टि से उचित ठहराने की कोशिश की गई, लेकिन जनता, विशेषकर युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना। आज के समय में युवाओं की आवाज़ और संवाद का सबसे बड़ा मंच सोशल मीडिया ही है। जब सरकार ने उसी पर रोक लगा दी, तो इसे लोकतांत्रिक अधिकारों को दबाने की कोशिश समझा गया। यही वह चिंगारी थी जिसने पहले से ही भीतर ही भीतर सुलग रहे असंतोष को आग में बदल दिया।

हालाँकि यदि गहराई से देखा जाए तो केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध इस व्यापक हिंसा का कारण नहीं था। असल में यह केवल एक ‘ट्रिगर’ था। असली असंतोष उस भ्रष्टाचार और अभिजनवाद से जुड़ा था, जिसकी शिकायत नेपाल की जनता लंबे समय से करती आ रही है। राजनीतिक दलों में सत्ता का केंद्रीकरण, नेताओं के परिवारजनों को विशेष लाभ मिलना, आम जनता की अपेक्षाओं की अनदेखी और सरकारी तंत्र में फैला रिश्वतखोरी का जाल—ये सब मिलकर एक गहरी खाई बना चुके थे। युवा पीढ़ी, जिसे अक्सर ‘Gen Z’ कहा जाता है, सबसे ज्यादा निराश हुई है। उनके लिए रोज़गार के अवसर सीमित हैं, शिक्षा प्रणाली कई खामियों से ग्रस्त है, और ऊपर से राजनेताओं के परिवार के लोग विशेष सुविधाएँ भोगते नज़र आते हैं। ऐसी स्थिति में असमानता और अन्याय का अहसास और प्रबल हो जाता है।

यही वजह है कि सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध में जो आंदोलन शुरू हुआ, उसने धीरे-धीरे भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की मांग का रूप ले लिया। ‘Gen Z Protest’ नाम से शुरू हुए इस आंदोलन में युवाओं ने नेतृत्व किया और यह दिखा दिया कि नई पीढ़ी अब खामोश नहीं बैठने वाली। उनकी नाराज़गी केवल सरकार के एक फैसले तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह पूरे राजनीतिक तंत्र के खिलाफ आक्रोश का स्वरूप ले चुकी है। इस आंदोलन ने यह भी स्पष्ट किया कि आज की युवा पीढ़ी राजनीतिक नेतृत्व से केवल भाषण नहीं, बल्कि वास्तविक जवाबदेही और पारदर्शिता चाहती है।


सरकार और सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया ने स्थिति को और भी विस्फोटक बना दिया। प्रारंभ में पुलिस ने रबड़ बुलेट्स, आंसू गैस और जल तोपों का उपयोग किया। लेकिन जैसे-जैसे भीड़ हिंसक होती गई, सुरक्षा बलों ने कहीं-कहीं लाइव गोलियों का इस्तेमाल भी किया। इससे प्रदर्शनकारियों में गुस्सा और भड़क गया और हिंसा और व्यापक हो गई। संसद भवन, राजनीतिक दलों के कार्यालय, मीडिया हाउस, सरकारी दफ्तरों और यहाँ तक कि जेलों तक पर हमला किया गया। कई स्थानों पर जेलों में तोड़फोड़ कर हजारों कैदी फरार हो गए। इन घटनाओं ने कानून व्यवस्था को पूरी तरह चरमरा दिया और सरकार को सेना बुलानी पड़ी। कर्फ्यू लगाए गए, इंटरनेट बंद किया गया और राजधानी समेत कई बड़े शहरों में सैनिक गश्त शुरू हो गई।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह दिखा दिया कि नेपाल की राजनीतिक व्यवस्था कितनी अस्थिर है। प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया, लेकिन इससे स्थिति सामान्य नहीं हुई। इसके बजाय सत्ता का शून्य और गहरा गया और राजनीतिक दिशा और भी अनिश्चित हो गई। युवा पीढ़ी अब केवल अस्थायी निर्णयों से संतुष्ट नहीं है, बल्कि वह स्थायी बदलाव और संरचनात्मक सुधार की मांग कर रही है। यह स्थिति नेपाल की लोकतांत्रिक यात्रा के लिए गंभीर चुनौती है। यदि इस आंदोलन को केवल दमन और कर्फ्यू के सहारे नियंत्रित करने की कोशिश की गई, तो यह लंबे समय तक शांति और स्थिरता को प्रभावित करेगा।


आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह हिंसा नेपाल के लिए गहरी चोट साबित हो रही है। पर्यटन नेपाल की अर्थव्यवस्था का बड़ा आधार है, लेकिन इस समय जब होटल जल रहे हैं और विदेशी पर्यटक फँसे हुए हैं, तब अंतरराष्ट्रीय छवि पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बैंकिंग और अन्य आर्थिक संस्थानों को भी निशाना बनाया गया है, जिससे वित्तीय असुरक्षा और गहरी हो सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेशकों का भरोसा डगमगाने की संभावना है, जो नेपाल जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए घातक साबित हो सकता है।

सामाजिक दृष्टि से भी यह आंआन्दोल नखास है। यहाँ केवल किसी जातीय या क्षेत्रीय पहचान को लेकर विद्रोह नहीं हो रहा, बल्कि यह एक पीढ़ीगत असंतोष है। युवा पीढ़ी अब स्पष्ट रूप से अपने अधिकारों के लिए मुखर है। वे यह संकेत दे रहे हैं कि पारंपरिक राजनीति के पुराने तौर-तरीके अब काम नहीं करेंगे। नयी पीढ़ी पारदर्शिता, तकनीकी सुविधा, समान अवसर और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता चाहती है। यदि राजनीतिक नेतृत्व इस बदलाव को समझने में विफल रहा, तो आने वाले समय में नेपाल बार-बार ऐसी उथल-पुथल का सामना करेगा।

मानवाधिकार की दृष्टि से भी यह स्थिति चिंताजनक है। पुलिस द्वारा की गई गोलीबारी में दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों घायल हैं। गिरफ्तारियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सवाल यह है कि क्या केवल दमनात्मक नीति से सरकार शांति बहाल कर पाएगी? लोकतंत्र का मूल आधार संवाद और सहमति है। यदि सरकार जनता की आवाज़ को दबाती है, तो वह लोकतंत्र के उद्देश्य को ही कमजोर कर देती है।

इसलिए यह आवश्यक है कि नेपाल का राजनीतिक नेतृत्व इस संकट को केवल कानून व्यवस्था की समस्या न माने, बल्कि इसे जनता के असंतोष की गहरी अभिव्यक्ति समझे। युवाओं के साथ संवाद, पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति ठोस कदम, भ्रष्टाचार के खिलाफ वास्तविक कार्रवाई और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान ही इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान है।

समग्र रूप से देखें तो नेपाल की वर्तमान हिंसा केवल एक निर्णय के विरोध से शुरू हुई थी, लेकिन यह कई दशकों से पल रहे भ्रष्टाचार, असमानता और राजनीतिक अभिजनवाद के खिलाफ एक बड़े सामाजिक विस्फोट में बदल चुकी है। यह घटना नेपाल के लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है कि अब बदलाव केवल औपचारिक बयानों से नहीं होगा, बल्कि युवाओं की आकांक्षाओं को केंद्र में रखकर ही व्यवस्था को आगे बढ़ाना होगा। यदि इस चुनौती को समझदारी और संवेदनशीलता से नहीं संभाला गया, तो नेपाल को लंबे समय तक अस्थिरता और हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।


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रवि रौशन कुमार


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